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‘ब्रिक्स’ पर भाजपा खेमे में सन्नाटा का सबब

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सांसद डा.संजय सिंह ने गोपनीय रणनीति बनाई है कि केन्द्र सरकार की हर विफलता को जनता के सामने लाया जाएगा 
राजीव रंजन तिवारी 
करीब सत्तर वर्ष के हो चुके भारतीय लोकतंत्रिक प्रणाली में अब कमोबेश सबकुछ चुनावों के मद्देनजर ही किया जाने लगा है। यदि यह नहीं होता तो शायद पिछले दिनों से लगातार गूंज रहे सर्जिकल स्ट्राइक को यूपी के चुनावी मैदान में उतारने की योजना पर भाजपा काम नहीं करती। कहा जा रहा है कि चाहे वह मामला आंतरिक हो या बाह्य, हर सफल मुद्दे को भाजपा के नेता चुनावी लाभ लेने की रणनीति पर काम कर रहे हैं। इसी के अंतर्गत ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स सम्मेलन को भी यूपी चुनाव के मैदान में उतारने की योजना थी। जानकार बताते हैं कि यदि ब्रिक्स सम्मेलन पूर्णतया भारत के हित में होता और भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन के पाकिस्तान के विरुद्ध और भारत के पक्ष में समझा लिए होते तो शायद सर्जिकल स्ट्राइक के साथ-साथ ब्रिक्स भी भाजपा के होर्डिंग्स और बैनर पर दिखने लगता। लेकिन अब ब्रिक्स मुद्दे पर भाजपा खेमे में गजब का सन्नाटा देखा जा रहा है। दरअसल, ब्रिक्स सम्मेलन से पूर्व भाजपा के एक वरिष्ठ नेता अनौपचारिक रूप से इशारे-इशारे में यह संकेत दिया था कि यदि ब्रिक्स सम्मेलन सफल हो जाता है तो उसे भी सर्जिकल के साथ यूपी चुनाव में उतारा जाएगा। दिलचस्प यह है कि ब्रिक्स की विफलता को कांग्रेस से जुड़े लोग मुद्दा बनाने की तैयारी में हैं। उल्लेखनीय है कि ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स के गोवा सम्मेलन में भारत ने भले एक बार फिर आतंकवाद के मुद्दे पर एकजुटता दिखाने की कोशिश की, पर वह अपने मंसूबे में कामयाब नहीं हो पाया। हालांकि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सामने पहली बार भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यह बताने की कोशिश की कि आतंकवाद के मसले पर दो पड़ोसी देशों का रुख अलग-अलग नहीं होना चाहिए। पर, अफसोस कि मोदी चीन को अपनी बात समझाने में विफल रहे। दरअसल, चीनी राष्ट्रपति ने आतंकवाद को लेकर भारत के रुख पर सहमति तो जताई, मगर उन्होंने पाकिस्तान के प्रति अपना रवैया बदलने का कोई संकेत नहीं दिया। जाहिर है, पाकिस्तान के साथ चीन के अपने राजनीतिक, सामरिक और व्यापारिक स्वार्थ हैं और वह उस पर फिलहाल अपना रुख बदलने को तैयार नहीं है। पाकिस्तान को लेकर चीन के नरम रुख की वजहें साफ हैं। उसने पाकिस्तान में अपने परमाणु रिएक्टर लगा रखे हैं और वह दक्षिण एशिया में इसका बाजार बढ़ाना चाहता है। इसके अलावा पाकिस्तान में अपनी उपस्थिति बना कर वह भारत सीमा विवाद को भी उलझाए रखना चाहता है। सबके बावजूद चीन के लिए भारत एक बड़ा बाजार है और वह इससे अपने व्यापारिक रिश्ते कभी खत्म नहीं करना चाहेगा, इसलिए उसने व्यापारिक रिश्तों को और मजबूत बनाने की बात कही है। फिलहाल भारत ने दुनिया भर में आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को घेरने का अभियान चला रखा है। ब्रिक्स के मुद्दे पर भारत के राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले पौने तीन वर्षों में सर्वाधिक कार्य विदेश नीति को मजबूत बनाने के लिए ही की है, फिर भी भारत इस मुद्दे पर फिसड्डी क्यों हो रहा है। आपको बता दैं कि ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भारत के लिए आतंकवाद का मुद्दा अहम था। चीनी राष्ट्रपति ने इस मुद्दे पर कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया। जहां तक सुरक्षा परिषद का सवाल है तो इसके लिए भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ़्रीका की दावेदारियां अपनी जगह हैं और चीन ने खुले तौर पर कभी उसका विरोध नहीं किया। चीन एनएसजी जैसे मुद्दे पर भी भारत के रास्ते में बाधाएँ खड़ी कर सकता है और उसके बाद भी कहता है कि आपको (भारत को) बातचीत जारी रखनी चाहिए। रूस और पाकिस्तान के बीच नज़दीकियां बढ़ीं हैं। ये बात सच है कि हाल के कुछ वर्षों में भारत और रूस के रिश्ते थोड़े कमज़ोर हुए हैं। रूस की तरफ से भी कुछ ऐसी चीजें हुई हैं जिनकी वजह से भारत के लिए रक्षा उपकरण मुहैया कराने की रूस की विश्वसनीयता में थोड़ी कमी आई। भारत ने ब्रिक्स सम्मेलन में अपने हितों के मुताबिक़ लंबी तैयारी की होगी। लेकिन जब इतनी बड़ी मीटिंग होगी तो संभव है कुछ मुद्दों पर एक देश का हित दूसरे देश के हित से टकराया होगा। सो हुआ। यदि सीधे और सपाट शब्दों में कहें तो भारत को ब्रिक्स सम्मेलन से उतना लाभ नहीं हुआ, जिसकी अपेक्षा थी। जानकार तो यहां तक बताते हैं कि जिस तरह भाजपा सर्जिकल स्ट्राईक का ढिंढोरा पीटकर यूपी चुनाव में लाभ लेने के प्रयास कर रही है, उसी तरह उसके निशाने पर ब्रिक्स भी था। भाजपा ब्रिक्स को भी यूपी चुनाव में अपनी उपलब्धि बताकर पेश करने वाली थी, पर ब्रिक्स की रिपोर्ट मनोनुकूल न होने से पार्टी में भी मायूसी है। खास बात यह है कि मोदी की ब्रिक्स में विफलता को कांग्रेस मुद्दा बनाने की तैयारी कर रही है। कहा जा रहा है कि बेहद सुलझे हुए व्यक्तित्व के धनी व यूपी चुनाव प्रचार अभियान समिति के प्रमुख सांसद डा.संजय सिंह केन्द्र सरकार की हर विफलताओं को चुनाव की रणनीति से जोड़ने की योजना बना रहे हैं। दरअसल, ब्रिक्स के माध्यम से भारत की मुख्य चुनौती चीन के साथ संबंधों में संतुलन और आर्थिक मामलों में सदस्य देशों के बीच एकजुटता बनाना था। ब्रिक्स मूलतः एक आर्थिक समूह है लेकिन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आर्थिक सवालों को राजनीतिक और राजनयिक सवालों से अलग करके नहीं देखा जा सकता। अमेरिका के प्रति भारत के अत्यधिक झुकाव ने रूस को पाकिस्तान और चीन के साथ संबंध सुधारने के लिए प्रेरित किया है जिसका एक प्रमाण हाल ही में रूस और पाकिस्तान की सेनाओं के संयुक्त युद्धाभ्यास के रूप में देखने को मिला था। इसे भी भारत की कुटनीतिक विफलता के रूप में देखा गया। यह भी सही है जम्मू-कश्मीर हो या आतंकवाद या फिर एनएसजी की सदस्यता, इन सभी मुद्दों पर रूस भारत का समर्थन करता रहा है। फिर इस बात की जरूरत समझी जा रही है कि भारत रूस को अपनी दोस्ती के पुख्ता होने के बारे में आश्वस्त करता रहे। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की दिलचस्पी इसमें थी कि भारत के साथ व्यापार के क्षेत्र में चीन को जो भारी बढ़त हासिल है, वह बरकरार रहे। लेकिन विचित्र बात यह रही कि वे ऐसे समय में गोवा पहुंचे जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच और स्वयं भाजपा के कई प्रमुख नेता तथा गुजरात का उद्योग एवं वाणिज्य संघ यह मांग कर रहा था कि चीनी माल का बहिष्कार किया जाए क्योंकि चीन आतंकवाद के मसले पर पाकिस्तान का समर्थन करता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद के संस्थापक मसूद अजहर को आतंकी घोषित कराने के भारत के प्रयासों में हर बार रोड़ा अटका देता है। पीएम मोदी ने गोवा में शिखर सम्मेलन के दौरान सदस्य देशों को बताया कि 'भारत के पड़ोस में आतंकवाद का 'मदरशिप' चल रहा है', जो विकास तथा आर्थिक वृद्धि के ब्रिक्स के लक्ष्यों के लिए खतरा है। फिर भी पांचों सदस्य देशों द्वारा स्वीकृत गोवा घोषणा-पत्र में भारत की उन चिंताओं का ज़िक्र नहीं है, जो सत्र के दौरान या प्रारंभिक सत्र के दौरान उठाई गई थीं। घोषणा-पत्र में आग्रह किया गया है कि आतंकवाद के ठिकानों को खत्म किया जाए। सम्मेलन के समापन के बाद सचिव अमर सिन्हा ने मीडिया से कहा कि घोषणा-पत्र में 'विचारों पर फोकस' है। उन्होंने कहा कि वे लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे पाकिस्तान-स्थित गुटों को आतंकवादी घोषित करने को लेकर सर्वसम्मति हासिल नहीं कर सके। राजनीति के ज्ञाता मानते हैं कि ब्रिक्स सम्मेलन की कथित विफलता के बाद भाजपा खेमे एक अजीबोगरीब सन्नाटा का आलम है। सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व सुलझे हुए रणनीतिकार सांसद डा.संजय सिंह ने यह गोपनीय रणनीति बनाई है कि केन्द्र सरकार की हर विफलता को जनता के सामने लाया जाएगा। इसके लिए उन्होंने पार्टी से जुड़े लोगों को मुस्तैद करने का काम आरंभ कर दिया है। स्वाभाविक है, ब्रिक्स के मुद्दे पर केन्द्र सरकार की विफलता को भी वह पब्लिक में उठाना चाहेंगे। बहरहाल, देखना है कि उनकी रणनीति कितना सफल हो पाती है?
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