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विस्तार से पढ़ेः मुलायम के घर में तकरार, कौन है जिम्मेदार, सरकार या परिवार?

शिवपाल सिंह यादव ने दिया मंत्री और अध्यक्ष पद से इस्तीफा, मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया नामंजूर 
लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार के वरिष्ठ काबीना मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने आज रात अपने पद से इस्तीफा दे दिया. सूत्रों के मुताबिक शिवपाल ने शाम को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से उनके आवास पर जाकर मुलाकात की. करीब 20 मिनट चली मुलाकात करके लौटने के बाद शिवपाल ने मंत्रिमंडल से अपना त्यागपत्र मुख्यमंत्री को भिजवा दिया. हालांकि मुख्यमंत्री ने उनका इस्तीफा नामंजूर कर दिया है. अंतिम समाचार मिलने तक कश्मकश का दौर जारी था. खबरों के मुताबिक, प्रदेश अध्यक्ष का इस्तीफा पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह को सौंप दिया है. वहीं सूत्रों के मुताबिक शिवपाल यादव के बेटे आदित्य ने भी प्रादेशिक को‌-ऑपरेटिव फेडरेशन के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. मालूम हो कि मुख्यमंत्री द्वारा गत 13 सितंबर को शिवपाल के करीबी अधिकारी माने जाने वाले मुख्य सचिव दीपक सिंघल को हटाए जाने के बाद अखिलेश और शिवपाल की तल्खियां और बढ़ गई थीं. सिंघल को हटाए जाने के बाद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के आदेश पर अखिलेश को समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाकर शिवपाल को यह जिम्मा सौंप दिया गया था. इसके चंद घंटों बाद ही अखिलेश ने शिवपाल से लोक निर्माण, राजस्व और सहकारिता जैसे महत्वपूर्ण विभाग छीन लिए थे. सूत्रों के मुताबिक समाजवादी पार्टी में चल रहे सियासी घमासान के बीच मुलायम ने शिवपाल को अपने घर बुला कर काफी समझाने की कोशिश की थी कि वह अभी इस्तीफा न दें मगर यह प्रयास नाकाम रहा. आज दिल्ली से लेकर लखनऊ तक दिनभर रही गहमागहमी के बीच शाम को उन्होंने अपना इस्तीफा सौंप दिया. नाराजगी के बाद पहली बार शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच भी 20 मिनट की मुलाकात हुई. वहीं सूत्रों के मुताबिक शिवपाल यादव के बेटे आदित्य ने भी प्रादेशिक को‌-ऑपरेटिव फेडरेशन के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. सूत्रों के मुताबिक, मुलायम सिंह ने सीएम अखिलेश को शिवपाल के पुराने विभाग लौटाने को कहा था लेकिन उन्होंने बात नहीं मानी. इससे पहले परिवार का झगड़ा खुलकर सामने आने के बाद सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव गुरुवार शाम दिल्ली से लखनऊ पहुंचे और अपने बेटे और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और भाई शिवपाल यादव से मिलकर कलह को निपटाने की कोशिश शुरू की. जैसे ही मुलायम यहां पहुंचे उन्होंने शिवपाल को तलब किया और हालात को सामान्य बनाने के लिए बंद कमरे में उनके साथ बैठक की. शिवपाल ने बाद में अखिलेश से उनके आधिकारिक निवास पर मुलाकात की. सूत्रों ने बताया कि मुलायम के निर्देश पर दोनों के बीच करीब 20 मिनट तक बैठक हुई. इससे पहले मुलायम के चचेरे भाई और सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा था, "उनके (मुलायम) यहां पहुंचने के बाद सबकुछ ठीक हो जाएगा. उनकी बात अंतिम होगी." इससे पहले दिन में रामगोपाल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी और दावा किया था, 'अखिलेश किसी से भी नाराज नहीं हैं और नेताजी (मुलायम) का फैसला पार्टी में अंतिम है."
क्या अमर सिंह हैं यादव परिवार में लड़ाई की वजह? 
उत्तर प्रदेश के प्रथम परिवार की अंतर्कलह की वजह अमर सिंह माने जा रहे हैं. समाजवादी पार्टी से छह साल पहले निकाले गए अमर सिंह कुछ महीनों पहले ही पार्टी में वापस आए हैं. 60 वर्षीय अमर सिंह का राजनीतिक जीवन विवादों में ही रहा है, लेकिन बिजनेस, मीडिया और फिल्म जगत में उनकी खासी पकड़ मानी जाती है. पार्टी के कई लोगों का इशारा है कि यादव परिवार में इतने बड़े विवाद का कारण बाहरी है. विवाद के चलते मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने पिता व पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव और चाचा शिवपाल यादव के खिलाफ खड़े हो गए हैं. अगले साल के आरंभ में राज्य में चुनाव हैं और इससे पहले ही यह कलह सामने आ गई है. बिना किसी का नाम लिए 43 वर्षीय अखिलेश यादव ने बुधवार को कहा, अगर बाहरी लोग परिवार में दखल देते रहे तो... कैसे काम चलेगा? पार्टी के कई लोगों का मानना है कि अमर सिंह, जो अखिलेश यादव को अपने बेटे के समान कहते हैं, शिवपाल यादव के साथ मिलकर मुलायम सिंह यादव को अखिलेश के खिलाफ करने में लगे हुए हैं. शिवपाल यादव ने एक बयान में कहा कि जब सब साथ होते हैं तब संस्थान मजबूत रहता है. उन्हों ने लखनऊ में कहा कि ''सब लोगों को नेताजी का जो भी आदेश होगा उसे मानना है. नेताजी जो भी जिम्मेकदारी देंगे, वह सभी को निभानी है. वर्ष 2011 में मैं प्रदेश अध्यनक्ष था, तब भी इसी तरह मुझे इस जिम्मे,दारी से हटाकर अखिलेश को पदभार दिया गया था. नेताजी ने तो सोच समझकर ही बनाया होगा. अंतिम फैसला उन्हींभ का होगा.'' अमर सिंह पर आरोप है कि उन्होंने अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश के समाजवादी पार्टी प्रमुख के पद से हटवाने में अहम भूमिका निभाई. यह जिम्मेदारी शिवपाल यादव को दी गई थी. इस बात से नाराज अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के पास से सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय छीन लिए थे. ऐसा माना जाता है कि अखिलेश यादव ने अमर सिंह के करीबी नौकरशाह मुख्य सचिव दीपक सिंघल को पद से हटा दिया था. कहा जा रहा है कि सिंह ने सिंघल को वापस पद पर लाने के लिए विरोधी पक्षों को एक किया था. पार्टी के कई वरिष्ठ नेता इस पूरे मामले में अखिलेश यादव के साथ आ गए हैं और सभी के सभी अमर सिंह से नाराज हैं. समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव ने कहा कि पार्टी कैडर के लोग 'बाहरी' लोगों द्वारा नेता जी (मुलायम सिंह यादव) का फायदा उठाने के लिए कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. पार्टी नेता नरेश अग्रवाल ने कहा कि बाहरी लोग पार्टी की गतिविधियों में दखल नहीं दे सकते हैं.  
सपा में टकराव व उथल-पुथल के संकेत 
समाजवादी पार्टी के भीतर तीखे टकराव और उथल-पुथल के संकेत मिल रहे हैं। खुद मुलायम सिंह यादव के परिवार में खींचतान की खबरों से साफ है कि इतने सालों में उन्होंने पार्टी को जिस तरह परिवार-केंद्रित बना रखा था, अब उसमें भी महत्त्वाकांक्षाओं की लड़ाई सतह पर आने लगी है। ताजा घटनाक्रम दो मंत्रियों की बर्खास्तगी से शुरू होकर मुख्य सचिव को उनके पद से हटाए जाने और अब शिवपाल सिंह यादव से सभी महत्त्वपूर्ण विभाग ले लेने के रूप में सामने आया है। मगर शिवपाल सिंह का कद कम करने का यह फैसला शायद मुलायम सिंह की ओर से उन्हें समाजवादी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष घोषित करने की प्रतिक्रिया के रूप में सामने आया है। हालांकि अखिलेश के अपने चाचा शिवपाल सिंह से टकराव का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी कौमी एकता दल के विलय और उनके चहेतों के खिलाफ कार्रवाई के मसले पर दोनों के बीच तल्खी काफी बढ़ गई थी। मगर इस बार मतभेद सतह पर आ गया है। इस उठापटक के बीच मुलायम सिंह ने सबको समझाने की गरज से दिल्ली तलब किया, जिसका असर यह हुआ कि अखिलेश यादव ने कहा कि परिवार एक है, झगड़ा सरकार में है; घर या बाहर के लोग हस्तक्षेप करेंगे तो पार्टी और सरकार कैसे चलेगी! यह इस बात का संकेत है कि तल्खी को कम करने की कवायद कुछ असर कर रही है। मगर शिवपाल सिंह ने जिस तरह अखिलेश के बजाय उनके पिता मुलायम सिंह की बातों को तरजीह देने का इरादा जताया, उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि अब तक परिवार के इर्द-गिर्द सिमटी समाजवादी पार्टी की राजनीति के भीतर किस तरह सत्ता के कई केंद्र खड़े हो चुके हैं और सभी अपनी-अपनी शक्ति का अहसास कराने की कोशिश में हैं। मगर इस तरह के सुलह आमतौर पर तात्कालिक महत्त्व के होते हैं और मौका पाते ही फिर अहं का टकराव सामने आ जाता है। यों भी, राजनीति में महत्त्वाकांक्षाओं को नियंत्रित या अनुशासित रखना जटिल काम है। उत्तर प्रदेश में सपा के मुखिया के रूप में मुलायम सिंह ने पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में लोकतंत्र को मजबूत करने के बजाय उसे अपने ही परिवार के नजदीक या दूर के सदस्यों से चलाने को बढ़ावा दिया। यह छिपी बात नहीं है कि पिछले साढ़े चार साल के दौरान बतौर मुख्यमंत्री अखिलेश खुद को बंधा हुआ महसूस कर रहे थे और पार्टी या सरकार में बैठे उनके कद्दावर संबंधी उनके नाम पर अपना हित साध रहे थे। हालत यह दिखी कि मंत्री से लेकर सचिव तक की नियुक्ति के मामले में अखिलेश के सामने शायद अपने पिता की मर्जी का खयाल रखने की लाचारी थी। इसलिए अब अगर भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे मंत्रियों की बर्खास्तगी और मुख्य सचिव को हटाने या फिर अपने चाचा शिवपाल सिंह के मामले में उन्होंने कुछ सख्त फैसले किए हैं तो उनके रुख में इस अचानक बदलाव से उथल-पुथल होना स्वाभाविक है। मगर समस्या यह है कि नजदीक आते विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस घटनाक्रम का सपा की छवि और ताकत पर जो असर पड़ेगा, उसकी भरपाई कैसे हो पाएगी!
बोले रामगोपाल, अखिलेश से बिना पूछे शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष बनाना गलत 
सपा के महासचिव रामगोपाल यादव ने कहा है कि कुछ ऐसे लोग हैं जो पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों का पार्टी से कोई लगाव नहीं है। अमर सिंह का बिना नाम लिए उन्होंने कहा कि जो समाजवादी नहीं वो मुलायमवादी भी नहीं हो सकते। रामगोपाल यादव लखनऊ में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मुलाकात करने के बाद मीडिया से बात कर रहे थे। अखिलेश और रामगोपाल यादव के बीच करीब एक घंटे तक बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव को बिना पूछे प्रदेश अध्यक्ष पद से नहीं हटाया जाना चाहिए था। रामगोपाल यादव ने साफ किया कि गतिरोध दूर करने के लिए मुलायम सिंह यादव जल्द ही अखिलेश यादव से मुलाकात करेंगे। उन्होंने कहा कि अखिलेश और मुलायम सिंह की मुलाकात से ही बात बनेगी। गौरतलब है कि मुलायम सिंह यादव ने भाई रामगोपाल यादव को अखिलेश से बात करने के लिए लखनऊ भेजा था। रामगोपाल यादव ने कहा कि कुछ लोग नेताजी के सीधेपन का फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि एक व्यक्ति पार्टी का नुकसान करने में लगा है। पार्टी महासचिव ने कहा, पार्टियां नीतियां तय करती है जिस पर सरकार अमल करती है। सपा की मंगलवार को हुई बैठक में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश इकाई के प्रमुख का पद वापस ले लिया गया था। यह फैसला किसी और का नहीं बल्कि पार्टी सुप्रीमो और उनके पिता मुलायम सिंह यादव का ही था। जवाब में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने चाचा और पार्टी के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव से सभी अहम मंत्रालयों का प्रभार वापस ले लिया था और उन्हें समाज कल्याण मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप दी थी। इसके बाद खबर आई कि शिवपाल अखिलेश से नाराज हैं और सरकार से इस्तीफा दे सकते हैं लेकिन अगले ही दिन मुलायम और शिवपाल के बीच बातचीत हुई।
मुलायम के लिए अखिलेश से ज्यादा अहम हैं शिवपाल 
समाजवादी पार्टी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई शिवपाल यादव का खुलेआम पक्ष लेते रहते हैं। इससे पहले इस साल 15 अगस्त के मौके पर पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की उपस्थिति में कहा था कि यदि शिवपाल पार्टी का साथ छोड़ देते हैं तो समाजवादी पार्टी बिखर जाएगी। हम थोड़ा और पीछे जाएं तो नवंबर 2013 में लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले मुलायम ने शिवपाल को रामगोपाल यादव पर तरजीह देते हुए चुनावों के लिए पार्टी की कमान उनके हाथ में ही सौंपी थी। पार्टी की मंगलवार को हुई बैठक में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश इकाई के प्रमुख का पद वापस ले लिया गया और यह फैसला किसी और का नहीं बल्कि पार्टी सुप्रीमो और उनके पिता मुलायम सिंह यादव का ही था। जवाब में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने चाचा और पार्टी के कद्दावर नेता शिवपाल सिंह यादव से सभी मंत्रालयों का प्रभार वापस ले लिया। इस मामले में पार्टी के पुराने नेताओं का कहना है कि कुछ भी हो जाए लेकिन, समाजवादी पार्टी को यदि 2017 में होने वाला विधानसभा चुनाव जीतना है तो मुलायम के पास शिवपाल का बचाव करने और उन पर निर्भर रहने के आलावा और कोई दूसरा आॅप्शन नहीं है। आखिर शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी और मुलायम के लिए इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं? भले ही अखिलेश यादव पार्टी की तरफ से मुख्यमंत्री पद का चेहरा हैं, पार्टी में अमर सिंह की वापसी हो गई है और आजम खान जैसे बड़े नेता मौजूद हैं लेकिन, पार्टी कार्यकर्ताओं की बड़ी जमात मुलायम सिंह यादव के बाद शिवपाल को ही अपना नेता मानती है। पार्टी से जुड़े कुछ लोग बताते हैं कि शिवपाल यादव कार्यकर्ताओं के साथ हमेशा संपर्क में रहते हैं, राज्य के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा कर जमीनी स्तर पर पार्टी के लिए काम करते हैं, कार्यकर्ताओं के बीच पार्टी के किसी दूसरे बड़े नेता की इतनी पकड़ नहीं है जितनी शिवपाल की है, ये कुछ ऐसी बाते हैं जो शिवपाल को औरों से अलग खड़ा करती हैं और मुलायम के लिए उनको महत्वपूर्ण बनाती हैं। इस संबंध में समाजवादी पार्टी के एक नेता का कहना है, ‘अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अखिलेश यादव ही पार्टी के पोस्टर बॅाय होंगे। आगामी 3 अक्टूबर से वह एक बार फिर पार्टी के लिए समर्थन जुटाने के मकसद से ‘विकास से विजय की ओर’ यात्रा करने वाले हैं। उन्होंने ट्विटर पर इसकी घोषणा भी कर दी है। यदि समाजवादी पार्टी चुनाव जीतने सफल रहती है तो वही एक बार फिर मुख्यमंत्री भी होंगे। लेकिन, मुलायम सिंह यादव यह बात अच्छे तरीके से जानते हैं कि चुनाव जीतने के लिए एक मजबूत संगठन और निष्ठावान संगठनकर्ता की जरूरत होती है। संगठन के काम के लिए शिवपाल यादव पार्टी के सबसे उपयुक्त चेहरे हैं। उन्होंने नेता जी के साथ दशकों तक पार्टी संगठन में काम किया है और पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उनकी बहुत ही गहरी पैठ है। समाजवादी पार्टी के एक अन्य नेता कहते हैं, ‘मुस्लिम और यादव समुदाय पार्टी का सबसे बड़ा वोट बैंक है। मुलायम सिंह के बाद शिवपाल इन दोनों ही समुदायों के बीच पार्टी के सबसे स्वीकार्य नेता हैं। पार्टी के लिए आगामी चुनाव में इन दोनों समुदायों का अधिकटम वोट पाने के लिए मुलायम को शिवपाल के सहयोग की जरूरत पड़ेगी। वहीं, शिवपाल की पार्टी कार्यकर्ताओं के आलावा आम लोगों में भी अच्छी पकड़ है। अखिलेश इस मामले में अपने चाचा शिवपाल से पीछे ही हैं। मुख्यमंत्री जहां हर सप्ताह लखनऊ स्थित अपने आवास पर आम लोगों के समस्याओं के समाधान के लिए जनता दरबार का आयोजन करते हैं वहीं, शिवपाल ऐसी बैठक हर रोज करते हैं। वो लोगों की परेशानियों सुनते हैं और उनके सामने ही संबंधित अधिकारियों को फोन लगाकर इस संबंध में कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं, इससे आम लोग के बीच शिवपाल को लेकर एक विश्वास की भावना है।’ इटावा के जसवंतनगर विधानसभा सीट से चौथी बार चुनाव जीतने वाले शिवपाल यादव की पार्टी में अन्य पक्षों से बातचीत करने और किसी भी तरह के विवाद में संकट मोचन की भूमिका निभाने वाले नेता की छवि है। विधानसभा चुनावा के मद्देनजर कौमी एकता दल के साथ हुए हालिया समझौते में शिवपाल ही पार्टी की तरफ से पहल करने वाले नेता थे। समाजवदी पार्टी में अमर सिंह की वापसी में भी शिवपाल ही मुख्य भूमिका में रहे। पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद वर्मा को पार्टी में फिर से वापस लाने का श्रेय शिवपाल को ही जाता है। हाल फिलहाल समाजवादी पार्टी में चाचा भतीजे के बीच चल रहे घमासान से कार्यकर्ताओं में निराशा है और वे इस विवाद के जल्द से जल्द शांत होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। शिवपाल और अखिलेश को नेता जी का दोनों हाथ बताते हुए एक पार्टी नेता का कहना है, ‘मुलायम चाहते हैं कि अखिलेश आगामी विधानसभा चुनाव के लिए अपनी बेदाग छवि के साथ प्रचार पर अपना ध्यान केंद्रीत करें और पार्टी और संगठन की जिम्मेदारी शिवपाल पर छोड़ दें। शिवपाल संगठन के काम से भली भांति परिचति हैं और पार्टी के लिए समर्थन जुटाने में अखिलेश से ज्यादा महत्वपूर्ण भी हैं।’ शायद यही वजह है कि मुलायम किसी भी कीमत पर शिवपाल के साथ खड़े रहना चाहते हैं और इसके लिए यदि अखिलेश की इच्छा के विरुद्व भी जाना पड़े तो उसके लिए भी तैयार हैं।
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