ताज़ा ख़बर

कश्मीर के बिगड़े हालात के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार

नई दिल्ली। भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के पूर्व प्रमुख एएस दुलत का कहना है कि भारत के कुछ न करने की वजह से भारतीय कश्मीर में मौजूदा अशांति और हवा मिली है. डीडब्ल्यू के साथ एक इंटरव्यू. में उन्होंने कहा कि कश्मीर में दो महीनों से हालात ठीक नहीं हैं। हजारों युवा सड़कों पर उतरे हैं। नाराज लोग पुलिस और सुरक्षा बलों पर पत्थरबाजी करते हैं जिनका जवाब भारतीय सुरक्षा बल आंसू गैस, पैलेट गन और कभी कभी गोलियों से भी देते हैं। इसकी शुरुआत 8 जुलाई को उस वक्त हुई जब एक कश्मीर अलगाववादी युवक बुरहान वानी की पुलिस की कार्रवाई में मौत हो गई। उसके बाद हुए व्यापक प्रदर्शनों में अब तक 70 से ज्यादा लोग मारे गए हैं। एएस दुलत का कहना है कि इस हिंसा के बावजूद भारत की सरकार ने गुस्साए लोगों तक पहुंचने और उनसे बात करने की दिशा में कुछ नहीं किया है। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती हालात से निपटने में पूरी तरह नाकाम रहे हैं। उन्होंने कहा कि कश्मीर के लोगों में बहुत रोष है और उस पर खास तौर से ध्यान दिए जाने की जरूरत है। दुलत मानते हैं कि कश्मीर में मौजूदा हालात इससे पहले 2008 और 2010 के दौरान हुई अशांति से कहीं ज्यादा खराब हैं और बुहरान वानी की मौत इस आग को भड़काने वाली एक चिंगारी थी। वो कहते हैं कि अब कश्मीर में एक नई पीढ़ी है जो 1990 के दशक की शुरुआत से हिंसा के साए में रही है। "ऐसे में वो भला किस तरफ जाएंग। उन्हें अपना कुछ भविष्य नहीं नजर आता. इस हताशा से उनका गुस्सा और बढ़ता है।" एएस दुलत कश्मीर के हालात के पीछे पाकिस्तान की भूमिका से भी इनकार नहीं करते हैं। वह कहते हैं कि कश्मीर में शुरू में आंदोलन स्वतःस्फूर्त था लेकिन जिस तरह इतने दिनों से अशांति बनी हुई है, उसमें पाकिस्तान की भूमिका तो दिखाई पड़ती है। वह कहते हैं कि पाकिस्तान भले ही कुछ भी कहे लेकिन वो नहीं चाहता कि कश्मीर में हालात सुधरें क्योंकि ये बात उसके पक्ष में जाती है। दुलत का कहना है कि हालात सिर्फ और सिर्फ बातचीत से ही बेहतर हो सकते हैं। उनके मुताबिक, "जब हम बात करना बंद देते हैं तो अपने लिए ही मुसीबतें पैदा करते हैं। हमें मुख्य धारा की पार्टियों के साथ साथ अलगाववादियों से भी बात करनी होगी।" वह कहते हैं कि बदकिस्मत से आज ये समझा जाने लगा है कि अलगगावादी पाकिस्तानी है तो फिर उनसे क्यों बात की जाए? इसीलिए बात की जानी बहुत जरूरी है। "अलगगावादी इस पूरे मुद्दे का अहम हिस्सा हैं और इस वक्त उनके साथ बात करने की तरफ ध्यान नहीं दिया जा रहा है।" भारत की तरफ से बलूचिस्तान का मुद्दा उठाए जाने पर दुलत का कहना है कि इससे कश्मीर समस्या हल नहीं होगी। वो कहते हैं कि भारत सरकार जितना बलूचिस्तान के मद्दे को उठाएगी, बलोच लोगों की मुश्किलें और उतनी ही बढ़ेंगी क्योंकि पाकिस्तान की सरकार उनके साथ उतनी ही सख्ती से पेश आएगी। वो मानते हैं कि ठीक यही बात कश्मीर पर भी लागू होती है, यानी पाकिस्तान जितना कश्मीर मुद्दे पर आक्रामक होगा, कश्मीरियों की मुश्किलों में भी उतना ही इजाफा होगा।
चरमपंथियों के जनाज़े में क्यों उमड़ती है भीड़? 
भारत प्रशासित जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिज़्बुल मुजाहिदीन के कथित चरमपंथी बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में प्रदर्शनों का दौर थम नहीं रहा है। प्रदर्शनों के दौरान हुई पत्थरबाज़ी, पेलेट गन के इस्तेमाल और झड़पों में 65 से ज़्यादा लोग मारे गए हैं और सुरक्षाकर्मियों समेत सैकड़ों लोग घायल हुए हैं। दिल्ली में रह रहे एक कश्मीरी हिंदू सुशील पंडित ने इन प्रदर्शनों की वजहों की पड़ताल की है। "कश्मीर घाटी एक बार फिर भड़क उठी है। तमाम लोगों का कहना है इस बार इसकी वजह जुलाई में सुरक्षा बलों के साथ हुई मुठभेड़ में चरमपंथी नेता बुरहान वानी की मौत है। पिछली बार इस पैमाने पर कश्मीर में हिंसा 2010 में हुई थी, जब सुरक्षा बलों के साथ प्रदर्शनकारियों की झड़पों में सौ से ज़्यादा लोग मारे गए थे। उस समय हिंसा तब भड़की थी जब श्रीनगर में आंसू गैस के गोलों की चपेट में आकर तुफ़ैल अहमद मट्टू नामक किशोर की मौत हो गई थी। इन दोनों घटनाओं के बीच में साल 2013 में चरमपंथी अफ़ज़ल गुरु को फांसी दी गई थी। उन्हें साल 2001 में भारतीय संसद पर हुए हमले में दोषी पाया गया था। उन्हें दिल्ली में फांसी दी गई थी और वहीं दफ़ना दिया गया था। कश्मीर में अनेक लोगों की नज़र में मट्टू और वानी को मिला कर भी जो क़द बनता है। अफ़ज़ल गुरु का क़द उससे कई गुणे बड़ा था। पर उन्हें फांसी दिए जाने के बाद घाटी में हिंसा की कोई बड़ी वारदात नहीं हुई थी। कश्मीर की मुख्यधारा की पार्टियों ने विद्रोहियों के 'घावों पर मरहम लगाने' और उनसे 'मेलजोल बढ़ाने' के नाम पर उन्हें जेलों से रिहा किया था और मारे गए चरमपंथियों के जनाज़े में शामिल होने की उन्हें इजाज़त दी थी। वानी का जनाज़ा इस कड़ी में अब तक का अंतिम और सबसे ज़्यादा उन्माद बढ़ाने वाला था। वानी की मौत के कुछ दिन पहले ही कश्मीर सरकार ने पत्थरबाजी करने वाले 600 से अधिक लोगों को माफ़ करते हुए जेलों से रिहा कर दिया था. ऐसा उनके बीच 'विश्वास बढाने' के तहत किया गया था। ऐसा उस समय किया गया, जब लोग सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंक रहे थे। इसके अलावा, बीते दो सालों से सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए पाकिस्तानी चरमपंथियों की लाशें भी अंत्येष्टि के लिए स्थानीय मस्जिदों को सौंपी जाने लगी थीं. इनके जनाज़े में स्थानीय लोग हज़ारों की तादाद में भाग लेते थे। इसके लिए सिर्फ़ जम्मू कश्मीर सरकार को ही दोष नहीं दिया जा सकता। बीती जुलाई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भाजपा के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र सरकार ने याक़ूब मेमन की सार्वजनिक अंत्येष्टि की इजाज़त दी थी। याक़ूब को 1993 में मुंबई में सिलसिलेवार बम धमाकों में उनकी भूमिका के लिए फांसी दी गई थी। उन धमाकों में 257 लोग मारे गए थे और 1,400 से अधिक ज़ख़्म़ी हो गए थे। इस तरह की सार्वजनिक अंत्येष्टि से अलगाववादियों के दो मक़सद पूरे होते हैं। एक तो उन्हें विघटनकारी भावनाओं को भड़काने में मदद मिलती है। दूसरे, इससे उनके समर्थकों की नज़र में 'मारे गए चरमपंथियों के चारों तरफ़ शहादत का प्रभामंडल' सा बन जाता है। स्कूल की पढ़ाई बीच में छोड़ चुके और गर्व करने लायक कुछ कर गुजरने की मंशा रखने वाले लोगों को चरमपंथी संगठनों में भर्ती करने में इससे सहूलियत होती है। कश्मीर की मुख्य धारा के दोनों राजनीतिक दलों ने इसे रोकने के कोई प्रयास नहीं किए हैं। हालांकि वे भारत और इसके धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के प्रति आस्था जताते हैं, पर उनकी राजनीति कुछ और ही है। वे अटॉनोमी, पड़ोसी पाकिस्तान के साथ खुली सीमा और उसके साथ साझी सार्वभौमिकता की बात करते हैं। वे शरिया के मुताबिक़ चलने वाली बैंकिंग प्रणाली की बात करते हैं। ये दल सुप्रीम कोर्ट, केंद्रीय ऑडिटरों और चुनाव आयोग की भूमिका कम करने की मांग भी करते रहते हैं। इन राजनीतिक दलों ने कश्मीर छोड़ने को मजबूर हुए लाखों हिंदुओं को न्याय दिलाने के मुद्दे पर सिर्फ़ जुबानी जमाखर्च ही किया है। जब इन विस्थापितों की वापसी और घाटी में उनके पुनर्वास का मुद्दा उठता है, ये पार्टियां बिल्कुल वैसा ही करती हैं जैसा अलगाववादी करते हैं। कश्मीर में सक्रिय चरमपंथी गुट और कथित तौर पर पाकिस्तान में उन्हें शह देने वाले लोगों का मानना है कि कश्मीर में जिहाद के दो चेहरे हैं। एक तो हथियारबंद विद्रोही हैं, जिन्हें सीमा पार के चरमपंथी गुटों से सीधी मदद और दिशा निर्देश मिलते हैं। छोटी छोटी स्वतंत्र इकाइयों के रूप में ये कश्मीर घाटी में फैले हुए हैं, उन्हें नियंत्रित करने और उन पर लगाम रखने की पूरी संरचना पाकिस्तान में है। इसके अलावा अलगाववादी नेताओं का संगठन हुर्रियत कांफ़्रेंस है. यह तमाम अलगाववादी गुटों को मिलाकर बनाया गया शीर्ष राजनीतिक संगठन है. यह इन विद्रोहियों को एक तरह की बौद्धिक वैधता देता है। यह विद्रोहियों की स्थिति और अलगाववाद को उचित ठहराने के लिए जोड़ तोड़ करता रहता है।  
पाकिस्तान के लिए 'कश्मीर जीने-मरने का सवाल' 
पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल राहील शरीफ़ ने कहा है कि भारत प्रशासित कश्मीर पाकिस्तान के जीन मरने का सवाल है - राहील शरीफ़ ने इसे 'शह रग' कहकर बुलाया। उन्होंने कहा कि वो कश्मीरियों को कूटनीतिक और नैतिक समर्थन देना जारी रखेंगे। उन्होंने कहा कि भारत प्रशासित कश्मीर की जनता सरकारी (भारत) हिंसा का निशाना बन रही है। उन्होंने कहा कि वो आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए लड़ रहे भारत प्रशासित कश्मीर की जनता के बलिदान को सलाम करते हैं। जनरल शरीफ़ ने मंगलवार को शहीदी दिवस के अवसर पर रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम में ये बातें कहीं। उन्होंने कहा कि कश्मीर समस्या का अंतिम समाधान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के ज़रिए ही संभव है। इस अवसर पर पाकिस्तानी प्रमुख ने कहा कि वो दोस्तों और दुश्मनों को अच्छी तरह से पहचानते हैं। पाक-चीन दोस्ती के लिए 'सी पैक' बड़ी परियोजना है, जो पूरे क्षेत्र की समृद्धि में मददगार साबित होगी। जनरल शरीफ़ ने कहा कि सी-पैक परियोजना को समय पर पूरा करना उनका राष्ट्रीय कर्तव्य है। उन्होंने कहा, ''इस परियोजना में किसी बाहरी शक्ति को रास्ते में बाधा नहीं डालने देंगे, उसके ख़िलाफ़ हर प्रयास को सख़्ती से निपटा जाएगा।'' उल्लेखनीय है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीन में जी 20 के सम्मेलन के दौरान हुई चीनी राष्ट्रपति से मुलाक़ात में चीन-पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का मामला उठाते हुए इसे भारतीय सीमा का अतिक्रमण बताया था। जनरल शरीफ़ का कहना था कि वो सभी पड़ोसी देशों के साथ शांतिपूर्ण संबंध चाहते हैं, क्योंकि शांति का असल मतलब क्षेत्र में शक्ति संतुलन है। उन्होंने कहा कि 'सभी बाहरी षड्यंत्र और उकसाने वाली घटना के बावजूद पाकिस्तानी सेना देश की रक्षा करने में सक्षम है. पाकिस्तान पहले मज़बूत था और आज अजेय है।" उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान पड़ोसी देश है और वहां शांति और स्थिरता पाकिस्तान के हित में है। भारत का नाम लिए बग़ैर उन्होंने कहा कि हालांकि कुछ तत्व अफ़ग़ानिस्तान-पाकिस्तान के संबंधों में बाधा हैं, वो कभी अफ़ग़ानिस्तान के प्रति ईमानदार नहीं हैं।
  • Blogger Comments
  • Facebook Comments

0 comments:

Post a Comment

आपकी प्रतिक्रियाएँ क्रांति की पहल हैं, इसलिए अपनी प्रतिक्रियाएँ ज़रूर व्यक्त करें।

Item Reviewed: कश्मीर के बिगड़े हालात के लिए मोदी सरकार जिम्मेदार Rating: 5 Reviewed By: newsforall.in