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इन वजहों से एचआरडी से जाना पड़ा स्मृति ईरानी को!

नई दिल्ली। मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट में हुए व्यापक फेरबदल में सबसे बड़ी खबर स्मृति ईरानी का मानव संसाधन मंत्रालय से हटाया जाना और उनकी जगह प्रकाश जावडेकर को इस अहम मंत्रालय में लाना बन गया. एनडीए - 1 की सरकार में डॉ मुरली मनोहर जोशी जैसे कद्दावर नेता व एक सधे हुए अकादमिक शख्स के पास रहे मानव संसाधन मंत्रालय की जिम्मेवारी जब 2014 में एनडीए - 2 की सरकार में स्मृति ईरानी जैसे नये चेहरे को सौंपा गया तो यह अपने आप में एक चौंकाने वाला फैसला था. बाहर के लोगों की तो बात तो छोड़िए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस फैसले से भाजपा व परिवार के अंदर को लोग भी चौंक गये थे. लेखिका मधु किश्वर जैसी मोदी समर्थक इस फैसले पर उनसे असहमत हो गयीं और सोशल मीडिया में स्मृति की शैक्षणिक योग्यता, राजनीतिक अनुभव व कार्यक्षमता पर सवाल उठाते हुए अभियान चला दिया, जो लंबे समय तक मुख्यधारा मीडिया में सुर्खियां बना रहा. स्मृति की शैक्षणिक योग्यता व डिग्री पर भी खूब विवाद हुआ था. स्मृति ईरानी का मानव संसाधन विकास मंत्रालय से जाना उनके लिए व उनके वैसे समर्थकों के लिए झटका है, जो उनमें भाजपा की अगली ‘सुषमा स्वराज' की तलाश कर रहे थे. स्मृति की इस मंत्रालय से विदाई की पृष्ठभूमि उनके जिम्मेवारी संभालने के बाद से ही बन रही थी. मुद्दों को उनके सुलझाने के तरीके से भारतीय जनता पार्टी का पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ संतुष्ट नहीं था. हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या मामले पर उनका रुख पार्टी व संघ को पसंद नहीं आया. कठोर व्यक्तित्व का आदमी भी राजनीति लचीले रुख के साथ करता है. रोहित वेमुला पर उनके द्वारा पेश किये गये दावे व तथ्यों को रोहित वेमुला की मां ने धता बता दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लखनऊ में डॉ अंबेडकर विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला के मुद्दे पर छात्रों के विरोध का सामना करना पड़ा था, तब पीएम ने कहा था कि उन्हें रोहित की मौत का बहुत अफसोस है। पार्टी को रोहित वेमुला मामले में बैकफुट पर आना पड़ा था, जिसकी भरपाई पार्टी ने जेएयनू में लगे राष्ट्रविरोधी नारे को दौरान आक्रामक रुख अख्तियार कर की। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय में नयी शिक्षा नीति पर काम हो रहा है. सरकार ने इसके मसौदे भी जारी किया. स्मृति एक ओर शिक्षा के भगवाकरण के आरोपों का प्रभावी दबाव नहीं दे रहे थे, वहीं संघ के अंदर यह धारणा थी कि वे इस अहम मंत्रालय में उसके एजेंडे को प्रभावी ढंग से लागू नहीं कर पा रही हैं. पिछले साल बेंगलुरु राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उनसे नाराज हो गये. अमित शाह को स्मृति ईरानी की कुछ चीजें पसंद नहीं आयीं. स्मृति ईरानी इससे शाह की नजरों में चढ़ गयीं. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का विश्वास हासिल करने में वे पहले ही नाकामयाब रहीं थीं. कैबिनेट विस्तार से पहले अमित शाह ने प्रधानमंत्री मोदी व झंडेवालान में संघ के बड़े नेताओं से अलग-अलग चरण में बैठक की थी. समझा जाता है संघ के साथ हुई बैठक में स्मृति का पर कतरने पर सहमति बनी. आइआइएम बिल पर स्मृति सहमति का रास्ता निकालने में विफल रहीं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय व प्रधानमंत्री कार्यालय में इस बिल पर सहमति नहीं बन सकी. वहीं, जावडेकर ने आज सधी हुई प्रतिक्रिया दी है कि प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ बात कर वे शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर आगे बढ़ेंगे. शिक्षा में सक्रिय प्राइवेट सेक्टर उनसे नाराज था. नीति आयोग से भी उनके नेतृत्व वाले मंत्रालय का कुछ मुद्दों पर विवाद था. स्मृति ईरानी की भूमिका उत्तरप्रदेश चुनाव में क्या होगा, इस पर सवाल उठ रहे हैं. मानव संसाधन विकास मंत्रालय से उनकी विदाई को विश्लेषक दो एंगल से देख रहे हैं. एक तबके का कहना है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय जैसे भारी भरकम मंत्रालय से हटा कर उनका बोझ हलका किया गया है, ताकि वे यूपी चुनाव में अधिक सक्रिय हो सकें, लेकिन इसे दूसरे तरीके से ऐसे भी देखा जा रहा है कि प्रभावी दलित वोट बैंक वाले यूपी में स्मृति पर कार्रवाई कर भाजपा ने एक तरह से संकेत दिया है कि रोहित वेमुला मामले को ठीक से डील नहीं करने की उन्हें ‘सजा' मिली है. यह सच है कि अगर किसी शख्स को अधिक बड़ी चुनौती के लिए भेजा जाता है, तो उसके कद को बड़ा किया जाता है, न कि छोटा. जातीय खांचे वाले राज्य उत्तरप्रदेश में स्मृति ईरानी की सक्रियता पर पार्टी संगठन के अंदर एक सवाल पहले यह भी उठा था कि उत्तरप्रदेश के चुनावी समीकरण के अनुरूप स्मृति की मजबूत जातीय पहचान नहीं है, ऐसे में उन्हें सीएम प्रोजेक्ट करना बहुत फलदायी नहीं हो सकता है, भले ही उनके व्यक्तित्व में आकर्षण हो. अब यह अगले कुछ सप्ताह में स्पष्ट होगा कि यूपी चुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी.
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