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यमुना में स्नान करने पर नंदबाबा को पकड़कर ले गए थे वरुण देवता के दूत !

भोलेश्वर उपमन्यु 
मथुरा।कान्हा के धाम में मैया सदियों से विराजमान हैं। आजकल मां की पूजा-वन्दना-सेवा का दौर निरंतर चल रहा है। प्राचीन एवं नए मंदिरों में हर दिन भीड़ बढ़ती जा रही है। इनमें शामिल महाविद्या को विद्वान सभी दस विद्याओं से ऊपर हैं बताते हैं। उन्हें ही महाविद्या कहा जाता है। ये महा माया स्वयं मथुरा में कृपा बरसात करती हैं। इन्हें नील सरस्वती, ललिता त्रिपुरसुंदरी भी कहा जाता है। ग्र्रंथों में उल्लेख है कि महाविद्या की यात्रा करने के लिए नंद बाबा व यशोद कृष्ण जी को लेकर यहां आए थे। तब नंदबाबा ने मां यशोदा और कन्हैया के साथ मां के अलावा यहां विराजमान पशुपतिनाथ महादेव की भी पूजा-अर्चना-वंदना की थी। आज सूर्य की पुत्री और यमराज की बहिन कालिंदी का जल जहरीला हो चुका है। मां एक बूंद शद्ध जल के लिए और शुद्धि के लिए तरसा दी गई हैं, लेकिन यह समय ऐसा भी था जब पावन सरिता में रात्रि के समय स्नान करना पूरी तरह प्रतिबंधित था। रात्रि में वरुण देवता के सैनिक तैनात रहो थे। अब रक्षक भक्षक बनने का दौर भले परवान चढ़ रहा है, किंतु इतिहास बताता है कि प्राचीन काल में सोलह कलावतार प्रभु कृष्ण के पालक पिता नंदबाबा भी वरुण देव के नियम को तोड़ने पर कैद किए गए थे। श्रीजी पीठ के आचार्य मनीष बाबा बताते हैं कि रात्रि में नंद बाबा यह जानकर कि भोर हो गई है, यमुना में स्नान करने लगे। रात्रि काल में नंद को स्नान करते देख वरण देव के दूत नाराज हो गए और वह उन्हें लेकर वरुण लोक चले गए। इसकी जानकारी होने पर बाल कृष्ण वरुण लोक जा पहुंचे। वरुण देव ने उनका भरपूर स्वागत-सत्कार किया और नंद बाबा को भी ससम्मान उनके साथ विदा किया। यह वही स्थान है जहां तंत्र सम्राट के रूप में जग प्रसिद्ध कामराज दीक्षित ने साधना की। कामराज जी अपने साथ दो शेर लेकर चलते थे और उन्हीं सिंहों की पीठ पर उनके ग्रंथ रखे जाते थे। मथुरा के निवासी और सिद्ध तांत्रिक शीलचंद्र महाराज का उनके साथ शास्त्रार्थ हुआ। शीलचंद्र जी के ज्ञान से रौशन हुए कामराज जी ने उन्हें अपने दोनों शेर, सिद्ध श्रीयंत्र और पूजा ग्रंथ समर्पित कर दिए। मनीष बाबा कहते हैं कि शीलचंद्र जी ने शेरों को उसी समय आजाद कर दिया। कालांतर में छत्रपति शिवाजी ने यहां आकर तपस्या की। शीलचंद्र जी ने शिवाजी के निमित्त सहस्र चण्डी यज्ञ किया और विजयश्री का आशीर्वाद दिया। महाराज श्री ने शिवाजी से इस मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया। महाविद्या के इस क्षेत्र का श्रीमद् भागवत ग्रंथ में अंम्बिका वन के रूप में उल्लेख मिलता है।
मथुरा से 18 को शुरू होगी 84 कोस की गौडीय यात्रा
केशव जी गौड़ीय मठ द्वारा संचालित ब्रज 84 कोस की परिक्रमा इस बार मथुरा से शुरू होगी और 25 नवंबर को गोवर्धन में सम्पन्न होगी। स्वामी नारायण दास बताते हैं कि भक्ति वेदांत नारायण महाराज के सानिध्य में 60 साल पहले आरंभ यात्रज्ञ कार्तिक, ऊर्जा व्रत का पालन करते हुए चलेगी और इसमें देश-विदेश के हजारों भक्त शामिल होंगे। शरद पूर्णिमा पर वृंदावन, गोपाष्टमी पर नंदगांव व अन्नकूट उत्सव पर गोवर्धन पर पड़ाव होगा। स्वामी बीवी तीर्थ, स्वामी बीवी माधव, संत बन महाराज नित्य कथा-प्रवचन करेंगे। गोवर्धन स्थित गौड़ीय मठ में ऊर्जा व्रत व वैष्णव होम संग यात्रा का समापन होगा।
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