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सम्मान लौटा रहे लेखकों-साहित्यकारों पर अरुण जेटली का वार

नई दिल्ली। दादरी और दूसरी घटनाओं का जिक्र करते हुए पद्म और अकादमी सम्मान लौटा रहे लेखकों पर केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने तीखा प्रहार करते हुए इसे उनकी वैचारिक असहिष्णुता करार दिया है। एक लेख में उन्होंने आरोप लगाया कि ये लेखक एक तरह की राजनीति कर रहे हैं। जो दुखद घटनाएं कांग्रेस और सपा शासित राज्यों में हुई या हो रही हैं उसके लिए केंद्र की मोदी सरकार को घेरा जा रहा है। पिछले कुछ दिनों में ऐसे लेखकों की कतार लगती जा रही है जो पुराने सम्मान वापस कर रही है। जेटली ने लेख में उन्हें बेनकाब कर दिया। जेटली ने कहा कि ऐसे कई लेखक हुए जिनका झुकाव वाम या नेहरू काल से रहा। उन्हें सम्मान भी मिला। इनमें से कई ने तब भी नरेंद्र मोदी की आलोचना की थी जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे। जब केंद्र में मोदी सरकार बनी तो इन लेखकों की बेचैनी बढ़ गई। उन्हें पता है कि वाम राज खत्म हो चुका है, कांग्रेस लगातार कमजोर होती जा रही है। इनकी वापसी का रास्ता बंद हो गया है। ऐसे में अब "दूसरे तरीके से राजनीति का रास्ता" चुना गया है। एक संकट का माहौल बनाया जा रहा है। यह दिखाने की कोशिश हो रही है नई सरकार के काल में माहौल खराब हो रहा है। सरकार बनने के बाद से चर्च पर हमले, नन के साथ बलात्कार जैसे कई मामलों के तार वर्तमान सत्ता से जोड़ने की कोशिश हुई। लेकिन परत खुलने के साथ स्थिति स्पष्ट होती जा रही है। जांच से यह पता चला है कि बलात्कार में आरोपी व्यक्ति बांग्लादेशी मूल का है। साहित्य सम्मान लौटा रहे लेखक यह भूल गए हैं कि एम.एम. कलबर्गी की हत्या कर्नाटक में हुई और वहां कांग्रेस की सरकार है। उसी तरह महाराष्ट्र में एन दाभोलकर की हत्या हुई और उस वक्त वहां भी कांग्रेस की सरकार थी। उत्तर प्रदेश में दादरी की घटना हुई है और वहां सपा की सरकार है। ये सभी मामले कानून व्यवस्था से जुड़े हैं और सत्ताधारी सरकार को इसके लिए सवालों के कठघरे में खड़ा करना चाहिए। लेकिन लेखकों की ओर से ऐसा माहौल बनाया जा रहा है जैसे केंद्र की सरकार इसके लिए दोषी है। विरोध कर रही एक लेखक ने तो 1984 के सिख दंगे के विरोध में पद्म सम्मान वापस किया है। तंज कसते हुए जेटली ने कहा कि इनका विवेक जगने में 30 साल से ज्यादा का वक्त लग गया। सच्चाई यह है कि देश में वैचारिक असहिष्णुता का वातावरण बनाया गया है।
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