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कृष्ण की शक्ति बन बगुलामुखी ने किया कंस का संहार!

भोलेश्वर उपमन्यु 
मथुरा। कंस का संहार करने के लिए कृष्ण का प्राकट्य होने की बात जग प्रसिद्ध है, लेकिन बगुलामुखी सहस्रनाम में मां बगुलामुखी को कंसासुर संहारिणी बताया गया है। श्रीकृष्ण द्वारा पूजित मां द्वापर से लेकर आज तक मथुरा में चमत्कारी मानी जा रती हैं। उनकी पूजा-सेवा-साधना करने के लिए शासक-प्रशासकों संग आम आदमी बड़ी संख्या में दरबार में शरणागत होते हैं। दुष्टनाशिनी मां को पीतांबरा, राजराजेश्वरी महात्रिपुर सुंदरी, महाविद्या भी कहा जाता है। पुराने बस स्टैंड के सामने अम्बाखार में मौजूद मैया के प्राचीन मंदिर के सेवायत अवध किशोर चतुर्वेदी लब्बू पण्डा बताते हैं कि प्रलय के बाद यही दश शेष रहती हैं और यही सृष्टि की उत्पत्ति, पालन करती हैं। उन्होंने सुनाया कि महा तूफान आया और देवता तक त्राहि-त्राहि करते हुए विष्णु भगवान के पास पहुंचे। तब श्रीविष्णु ने मां की साधना की। उसके बाद सौराष्ट्र के हरिद्राकुण्ड में पीला तेज पुंज उठा और उसके बाद देवताओं तक को कष्ट देने वाला महातूफान खत्म हो गया। लब्बू कहते हैं कि उनका निवास अमृत सागर में है। मां स्वर्ण सिंहासन पर मणिमण्डप में विराजमान रहती हैं। इतिहास साक्षी है कि कंस संहार के लिए श्रीकृष्ण ने विशेष अनुष्ठान किया और तब मां पीतांबरा उनके शरीर में शक्ति रूप में समाहित हो गईं। इसके बाद कंस को संहारा। इस मंदिर से कुछ ही दूरी पर रंगेश्वर महादेव मन्दिर, कंस का अखाड़ा और कंस संहार स्थल है। और इस अंचल में मात्र यही मां का मंदिर रहा है। इसीलिए इस क्षेत्र का नाम भी प्राचीनकाल से अम्बाखार है। सेवायत बताते हैं कि मां का विग्रह यहां स्वयं प्रकट है। लच्छो गुरु ने उन्हें मनाया और तब से मां प्रतिदिन चमत्कार कर रही हैं। मंदिर में राजनीतिज्ञों, प्रशासकों, जुडिशियरी, सेना के अधिकारियों-कर्मचारियों एवं सभी वर्ग के भक्तों का आगमन होता है। इन दिनों सुबह शाम बड़ी संख्या में महिला-पुरुष दर्शन को पहुंच रहे हैं। लब्बू ने बताया कि 22 अक्टूबर को विशेष उत्सव-भण्डारा-भजन गायन-वादन होगा। उनका यह भी कहना था कि नौ रात्रा में नव दुर्गा की पूजा-साधना की जाती है, जबकि यह मां महाविद्या हैं और उनका महत्व बहुत अधिक है। भूख लगने पर जब उनका विकराल रूप हुआ तब देवाधिदेव भी भाग खड़े हुए थे और उस दौरान सभी दिशाओं में शिव को मात्र मां पीतांबरा ही दिखाई देती थीं।
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