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बिहार विधानसभा चुनावः भाजपा गठबंधन पर भारी, राजद-जदयू-कांग्रेस की यारी!

तारीखों के ऐलान के बाद सर्वे में दिखा महागठबंधन को बढ़त 
नई दिल्ली। बिहार विधानसभा चुनाव तारीखों का ऐलान हो गया है। बिहार में विधानसभा चुनाव पांच चरणों में पूरा होगा। पहला चरण का मतदान 12 अक्टूबर को, जबकि अंतिम चरण का मतदान पांच नवंबर को होगा। मतों की गिनती आठ नवंबर को होगी। तारीखों के ऐलान के साथ ही चुनावी सरगर्मियां भी तेज हो गई है। बिहार में 243 सदस्यीय विधानसभा के लिए होने वाले चुनावों के संबंध में इंडिया टीवी चैनल द्वारा की गई रायशुमारी में जेडीयू-आरजेडी-कांग्रेस के महागठबंधन को 116 से 132 सीटें मिलने का पूर्वानुमान जताया गया है। बिहार विधानसभा चुनाव तारीखों का ऐलान हो गया है। बिहार में विधानसभा चुनाव पांच चरणों में पूरा होगा। चैनल द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार,बीजेपी नीत गठबंधन को 94 से 110 सीटें मिल सकती हैं। इस गठबंधन में लोजपा, आरएलएसपी और एचएएम शामिल हैं। यह रायशुमारी सी-वोटर ने की है जिसका कहना है कि उसने अगस्त माह से सितंबर के पहले सप्ताह के बीच सभी विधानसभा सीटों में अलग अलग जगहों पर 10,683 लोगों का साक्षात्कार लिया और निष्कर्ष निकाला। एजेंसी का कहना है कि राज्य स्तर पर खामियों में तीन फीसदी की और क्षेत्रीय स्तर पर पांच फीसदी की कमी या बढ़त हो सकती है। वर्ष 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन को 206 सीटें मिली थीं जबकि रामविलास पासवान के साथ लालू प्रसाद के आरजेडी की अगुवाई वाले गठबंधन ने केवल 25 सीटें जीती थीं। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी, पासवान की लोजपा और उपेन्द्र कुशवाहा की आरएलएसपी वाले एनडीए को 174 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी। लालू नीतीश का गठबंधन मोदी लहर में केवल 51 विधानसभा सीटों में ही जीत हासिल कर पाया था। ‘बेहतर मुख्यमंत्री कौन’ के सवाल पर 53 फीसदी लोगों ने नीतीश कुमार को, 18 फीसदी ने बीजेपी नेता सुशील मोदी को और पांच फीसदी लोगों ने लालू प्रसाद तथा शत्रुघ्न सिन्हा को अपनी पसंद बताया। फीसदी के हिसाब से देखें तो लालू नीतीश कांग्रेस गठबंधन को 43 फीसदी वोट, बीजेपी नीत गठबंधन को 40 फीसदी वोट और अन्य को 17 फीसदी वोट मिल सकते हैं। 56 फीसदी लोगों ने कहा कि ये चुनाव बदलाव के लिए होंगे जबकि 44 फीसदी लोगों ने ‘नहीं’ कहा। 52 फीसदी लोगों ने कहा कि मुख्यमंत्री बदलना चाहिए, 48 फीसदी ने ‘नहीं’ कहा। 70 फीसदी ने कहा कि वे अपने वर्तमान विधायकों को बदलना चाहते हैं। यह सवाल भी पूछा गया कि बिहार के विकास के लिए कौन काम करेगा। इस पर 36 फीसदी ने बीजेपी नीत गठबंधन को जबकि 25 फीसदी ने लालू-नीतीश-कांग्रेस के गठबंधन को अपनी पसंद बताया। बिहार की बदहाली के लिए जिम्मेदार कौन है ? इस सवाल के जवाब में 52 फीसदी लोगों ने राज्य सरकार को जबकि 35 फीसदी लोगों ने केंद्र को जिम्मेदार बताया।
मुद्दे तलाशते राजनीतिक दल
बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में आम लोग जहां क्षेत्रीय समस्याओं को अपने स्तर पर चुनावी मुद्दा बनाने में लगे हैं वहीं कई दल अपनी-अपनी सुविधा के अनुसार मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं। बिहार में जातीय समीकरण के आधार पर जोड़-तोड की राजनीति कोई नई बात नहीं है। लेकिन, पिछले विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की स्वच्छ छवि और विकास, राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के मुख्य चुनावी मुद्दे थे। इस चुनाव में परिस्थितियां बदली हुई हैं। मित्र और विरोधी बदल गए हैं। जद (यू) जहां राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस के साथ चुनाव मैदान में है वहीं एनडीए में भाजपा के साथ लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) शामिल हैं। राजनीति के एक जानकार का मानना है कि इस चुनाव में मोदी सरकार का भ्रष्टाचार से कोई समझौता न करने का दावा एनडीए के लिए खास मुद्दा हो सकता है। एनडीए के नेता भ्रष्टाचार मुक्त बिहार का मुद्दा चुनाव में उठा सकते हैं। कह सकते हैं कि अगर बिहार में एनडीए की सरकार बनी तो वह भी साफ-सुथरी होगी। राजद-जद (यू) गठबंधन भी नीतीश की स्वच्छ छवि को आगे रखकर चुनाव लड़ रहा है। ऐसे में यह तय सा लग रहा है कि गठबंधन नीतीश की छवि को चुनाव में भुनाएगा। जानकार भी मानते हैं कि नीतीश कुमार की साफ-सुथरी छवि, सुशासन और विकास के बेहतर रिकॉर्ड को गठबंधन जरूर सामने रखेगा। लेकिन, लालू के साथ होने के कारण यह मुद्दा बन पाएगा, यह देखने वाली बात होगी। उन्होंने कहा कि यह भी तय है कि लालू-नीतीश गठबंधन केन्द्र सरकार द्वारा राज्य की मदद न करने का आरोप लगाते हुए इसे मुद्दा बनाने की कोशिश करेगा। एनडीए पहले से ही बिहार को सवा लाख करोड़ के पैकेज को भुना रहा है। नीतीश भी जवाब में यह दावा करने से नहीं चूक रहे हैं कि मोदी सरकार ने पुरानी मदद को ही नया बताकर पेश किया है। नीतीश लोकसभा चुनाव में किए गए वादे पूरे न होने की बात कह कर एनडीए पर हमला बोलते नजर आ सकते हैं। जानकार कहते हैं कि एनडीए यह मुद्दा चुनाव मैदान में जरूर उठाता नजर आएगा कि नीतीश अगर बिहार में 'जंगलराज' के लिए चर्चित लालू प्रसाद की पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे तो अच्छी सरकार कैसे दे पाएंगे? एनडीए के नेता विकास के लिए 'जिसकी सरकार केंद्र में उसी की राज्य में हो तो बेहतर' का तुरुप का पत्ता फेंकते भी नजर आ सकते हैं। अभी तक जो परिदृश्य उभर कर सामने आया है उसमें यही लग रहा है कि चुनाव में विकास सबसे बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है। इधर बिहार की राजनीति को नजदीक से जानने वाले एक और जानकार कहते हैं कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने गांधी मैदान में स्वाभिमान रैली में मंडल की वापसी की बात कहकर बता दिया है कि जाति के आधार पर मतदाताओं के ध्रुवीकरण का प्रयास किया जाएगा। जातीय गणित को बिहार में नकारा नहीं जा सकता। राजद का कहना है कि भाजपा, यहां तक कि प्रधानमंत्री यदुवंशियों की बात कर जातिवाद फैला रहे हैं। राजद के प्रदेश अध्यक्ष रामचंद्र पूर्वे कहते हैं कि गरीबों और पिछड़ों की बात करना जातीय राजनीति नहीं है। मोदी और नीतीश का आपसी मनमुटाव भी इस चुनाव में मुद्दा बन सकता है। प्रधानमंत्री द्वारा नीतीश के 'डीएनए' के संदर्भ में दिए गए बयान पर पहले से ही काफी राजनीति हो रही है।
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