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सियासी काउंटडाऊन में पहले पायदान पर विनोद जायसवाल, टुन्नाजी पाण्डेय नीचे खिसके

पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन के नाम पर विनोद के पक्ष में चल रही इलाके में जोरदार आंधी, हर जाति-धर्म के लोगों की मनःस्थिति में बह रही बदलाव की बयार, फलतः शहाबुद्दीन के मार्गदर्शन को 'मील का पत्थर' मानने लगे हैं जनता परिवार के लोग. उधर, राणा के रणनीतिक 'प्रताप' ने भी बिगाड़ी भाजपा की गणित, अक्षम थिंक टैंकों के भरोसे रहे टुन्नाजी पाण्डेय की स्पीड जनता परिवार ने कर दी धीमी, 07 जुलाई को वोटिंग से पूर्व कई तरह के समीकरणों के बनने के दिख रहे आसार,

सीवान (बिहार, भारत)। यद्यपि भारतीय लोकतंत्र की राजनीति पूरी तरह से संभावनाओं पर टिकी हुई होती है। यही वजह है कि कब, कहां और क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। बावजूद इसके चुनाव प्रचार के दौरान दिखने वाले सियासी काउंटडाऊन का भी अपना अलग एवं रोचक अंदाज है। डेलीगेट्स के वोटों पर आधारित बिहार में होने वाले एमएलसी चुनाव का मुकाबला धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ता जा रहा है। फिलहाल चर्चा करते हैं देश के पहले राष्ट्रपति देशरत्न डा.राजेन्द्र प्रसाद की धरती सीवान की। यहां एमएलसी चुनाव की सरगर्मी भी सियासी हलकों में रोज अपना रंग बदल रही है। कहा जा रहा है कि नामांकन से पूर्व तथा आरंभिक दौर में जिस तरह निवर्तमान एमएलसी टुन्नाजी पाण्डेय के पक्ष में हवा का रुख था, अब वह थोड़ा हल्का होता दिख रहा है। इस प्रकार कह सकते हैं कि सियासी काउंटडाउन में पहले पायदान पर रहने वाले भाजपा प्रत्याशी टुन्नाजी पाण्डेय मौजूदा हालात में खिसककर एक पायदान नीचे आ गए हैं, जबकि राजद (जनता परिवार) उन्मीदवार विनोद जायसवाल का सियासी सैंसेक्स अचानक उछल गया है। इसे भाजपा खेमे की नींद उड़ाने के लिए प्रयाप्त माना जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि इन बनते-बिगड़ते हालातों के पीछे दोनों प्रत्याशियों के समर्थकों का ही नकारात्मक या सकारात्मक योगदान है। यानी हार अथवा जीत का श्रेय समर्थकों के खाते में ही जाएगा, इसे नजरंदाज नहीं किया जा सकता। सबसे पहले चर्चा करते हैं राजद के एमएलसी प्रत्याशी विनोद जायसवाल की। जानकार बताते हैं कि विनोद जायसवाल भी टुन्नाजी पाण्डेय की तरह ही एक बड़े शराब कारोबारी हैं। सीवान के रॉबिन हूड के नाम से प्रचलित पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन (जो फिलहाल जेल में हैं) की लोकप्रियता का डंका अब भी ना सिर्फ सीवान में बल्कि पूरे प्रदेश में बजता है। निश्चित रूप से राजद प्रत्याशी विनोद जायसवाल को मो.शहाबुद्दीन का प्रयाप्त समर्थन हासिल है। पूर्व सांसद मो.शहाबुद्दीन के समर्थन का असर दिख भी रहा है। विनोद जायसवाल के समर्थकों का कहना है कि मो.शहाबुद्दीन के नाम पर कमोबेश हर डेलीगेट्स राजद के पक्ष में खड़ा दिख रहा है। दिलचस्प यह है कि लंबे समय से जेल में रहने के बावजूद मो.शहाबुद्दीन की लोकप्रियता में दिनोंदिन इजाफा हो रहा है। निश्चित रूप से यह शोध का विषय है कि आखिर उनमें जनहितकारी बने रहने का वैसा कौन सा गुण व्याप्त है, जो उन्हें निरंतर लोकप्रिय बना रहा है। निश्चित रूप से मो.शहाबुद्दीन की इस लोकप्रियता का पूरा लाभ विनोद जायसवाल को मिल रहा है।
इसके अलावा जीरादेई विधानसभा क्षेत्र के चर्चित व लोकप्रिय जननेता राणा प्रताप सिंह की भी इलाके में एक अलग छाप दिख रही है। हालांकि राणा प्रताप सिंह भी अपनी लोकप्रियता का पूरा श्रेय पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन को ही देते हैं। राणा प्रताप सिंह का कहना है कि यह शहाबुद्दीन साहब की छाप, पहचान व लोकप्रियता का ही असर है कि इलाके में हम सभी को लोगों का भरपूर प्यार मिल रहा है। सूत्रों का कहना है कि इलाके में राणा प्रताप सिंह ने भाजपा की बनी-बनाई रणनीति को बिगाड़कर रख दिया है। अपनी अनूठी रणनीति के बल पर राणा प्रताप सिंह राजद प्रत्याशी विनोद जायसवाल के पक्ष में वोटरों को लाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। यूं कहें कि विनोद जायसवाल को राणा प्रताप सिंह का ना सिर्फ समर्थन मिल रहा है बल्कि वे अपनी टीम के साथ दिन-रात एक कर किसी भी सूरत में इस बाजी को राजद के हाथ से जाने नहीं देना चाहते। हालांकि राणा प्रताप सिंह इस चुनाव को बिहार विधानसभा चुनाव का रिहर्सल नहीं मानते, क्योंकि यह आम मतदाता का चुनाव नहीं है। इसी क्रम में राजद नेता शमशुद्दीन का दावा है कि इलाके से जो संदेश मिल रहा है उसे देख यही कहा जा सकता है कि विनोद जायसवाल की जीत पक्की है। शमशुद्दीन कहते हैं कि एमपी साहब (मो.शहाबुद्दीन) जिसे चाहेंगे उसे ही वोट मिलेगा। विनोद जायसवाल को एमपी साहब का पूरा समर्थन हासिल है, इसलिए निसंदेह उनकी जीत को कोई रोक नहीं सकता। फिलहाल स्थिति यह है कि जनता परिवार ने विनोद जायसवाल के पक्ष में भाजपा प्रत्याशी टुन्नाजी पाण्डेय की घेराबंदी बड़े ही गोपनीय व सलीके से की है, जिसे समझ पाना इतना आसान नहीं है। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि जो वोटर टुन्नाजी पाण्डेय को वोट देने की हामी भर चुका है अब वह भी कथित रूप से विनोद जायसवाल के खेमे में जाता दिख रहा है। यह अलग बात है कि वोटर के पास जो ही जा रहा है, वह उसे ही अपना वोट देने की बात कह रहा है। इसलिए प्रत्याशियों के मन में भी संशय की स्थिति बनी हुई है। बावजूद इसके मौजूदा हालात में विनोद जायसवाल का ग्राफ थोड़ा बढ़ा है, जिससे टुन्नाजी पाण्डेय के खेमे में हलचल बनी हुई है।
अब यदि निवर्तमान एमएलसी टुन्नाजी पाण्डेय की चर्चा करें तो उनके पक्ष में सिर्फ दो बातें जा रही हैं। पहला यह कि वे स्थानीय हैं और दूसरा कि वह मृदुभाषी हैं और अपने आचरण व्यवहार से किसी को नाखुश नहीं करते। 21वीं सदी के 15वें वर्ष में होने वाले इस चुनावों को जीतने के लिए मुझे लगता है कि सिर्फ यही दो गुण पर्याप्त नहीं हैं। हालांकि टुन्नाजी पाण्डेय से जुड़े कुछ लोग मानते हैं कि वे सबके सुख-दुख में शामिल होते हैं, जरूरत के मुताबिक यथासंभव मदद भी करते हैं। इन बातों को देखकर यह कहीं से प्रतीत नहीं हो रहा है कि टुन्नाजी पाण्डेय चुनाव हारेंगे। इस वजह से कुछ मतदाता खुलेआम तो कुछ दबी जुबान से उन्हें समर्थन देने की बात कह रहे हैं। वहीं कुछ लोग डंके की चोट पर कहते हैं कि टुन्नाजी पाण्डेय जरूरत पड़ने पर फोन नहीं उठाते और यह जानने की कोशिश भी नहीं करते कि उनके वोटर का क्या दुख-दर्द है। यदि टुन्नाजी पाण्डेय के समर्थन और विरोध दोनों का गहनता से आकलन किया जाए तो कुल मिलाकर यह उनकी नकारात्मक छवि को ही प्रस्तुत कर रही है। वैसे आमतौर पर यह सबको पता है कि भारतीय लोकतांत्रिक प्रणाली के अंतर्गत होने वाले चुनावों में नीति, अनीति, कुनीति के साथ रणनीति और कुटनीति का भी अहम योगदान होता है। इस बिन्दु पर टुन्नाजी पाण्डेय की कार्यशैली विनोद जायसवाल से कमजोर दिख रही है। सूत्रों का कहना है कि टुन्नाजी पाण्डेय व उनके लोग नीति, अनीति, कुनीति पर तो काम कर रहे हैं पर वे रणनीति और कुटनीति को परिभाषित करने में ना सिर्फ लड़खड़ा जा रहे हैं, बल्कि वोटरों के समक्ष उनकी कथित अच्छी छवि को बताने में भी असमर्थ दिख रहे हैं। हालांकि इस प्रणाली में ज्ञानी-अज्ञानी का सवाल नहीं है, इस मुद्दे पर टुन्नाजी पाण्डेय के जो भी रणनीतिकार हैं यहां उनकी अक्षमता स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रही है। कहा जा रहा है कि टुन्नाजी पाण्डेय जिन्हें अपना थिंक टैंक मान रहे हैं, वे लोग खुद ही अपने चाल-चरित्र-चेहरा के कारण टुन्नाजी पाण्डेय की राह में कांटे बिछा रहे हैं। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि टुन्नाजी पाण्डेय के कई अत्यंत निकटस्थ सलाहकार विनोद जायसवाल के संपर्क में भी हैं, जो खा रहे हैं टुन्नाजी पाण्डेय का और गा रहे हैं विनोद जायसवाल का। खास बात यह भी है कि शायद टुन्नाजी पाण्डेय अपने भीतरघातियों को ठीक से पहचान तक नहीं पा रहे हैं, जो उनकी नजर का दोष है। यूं कहें कि टुन्नाजी पाण्डेय के पास भरोसेमंद लोगों का घोर अभाव है। टुन्नाजी पाण्डेय खेमे के कुछ लोग दबी जुबान से यह भी कह रहे हैं उनकी पीठ पर वार करने के लिए उनके अपने ही लोग पूरी तैयारी में हैं। लबोलुआब यह है कि यदि टुन्नाजी पाण्डेय चुनाव हारते हैं तो इसके दो अहम कारण सामने आएंगे। पहला यह कि विपक्षी दल द्वारा की गई अभेद्य घेराबंदी और दूसरा यह कि उनके अपने लोग जो भीतरघात को अंजाम देने के लिए पूरी शिद्दत से लगे हुए हैं।
वैसे ये चुनाव पूर्व का आंकलन है। वोटिंग 7 जुलाई को होनी है। उस दिन के सियासी काउंटडाउन में कौन किस पायदान पर रहेगा, अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। पर, इतना जरूर है कि यदि आज वाली स्थिति कायम रही तो टुन्नाजी पाण्डेय को शिकस्त देने में विनोद जायसवाल को बहुत मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। अब देखाना है कि ऊंट किस करवट बैठता है। (नोट- इस विश्लेषण में लगाए गए सारे फाइल फोटो हैं तथा तथ्य कानाफूसी व सूत्रों के हवाले से प्रस्तुत किया गया है।)    लेखक- राजीव रंजन तिवारी (राष्ट्रीय स्तंभकार, राजनीतिक विश्लेषक, राजनीतिक सलाहकार व विदेशी मामलों के जानकार) फोन- +91 775994349
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