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ब्रुनेई की सल्तनत में शादी जैसा एहसास समेटे रहा 51 कन्याओं का सामूहिक विवाह

इलाकाई कायनात में गूंजा कन्यादान समागम का धर्मनिरपेक्ष वैवाहिक कार्यक्रम 
 मैरवा (सीवान)। ब्रुनेई की सल्तनत में होने वाली शादी को तो भव्य और यादगार होना ही था, लेकिन सीमित दायरे वाले मैरवा में कन्यादान समागम के तत्वावधान में कराए गए 51 जोड़ों के सामूहिक विवाह ने भी लोगों को ब्रुनेई के सल्तनत के कार्यक्रम जैसा ही एहसास कराया। ब्रुनेई के प्रिंस अब्दुल मलिक ने जब अपनी आईटी पेशेवर दुल्हन से शादी रचाई, तो आयोजन 5 अप्रैल से शुरू होकर 16 अप्रैल यानी 11 दिनों तक चला। पता नहीं कितने लोग यह जानते हैं कि ब्रुनेई की सल्तनत दुनिया में सबसे अमीर है और यह अमीर रियासत अपने धन धान्य का शानदार प्रदर्शन भी करती है। शादी में दूल्हा-दुल्हन सोने के सिंहासनों पर बैठे थे। दुनिया भर से करीब 6,000 खास मेहमानों ने शादी में शिरकत की। इसमें कई शाही परिवारों के सदस्यों के अलावा एशिया के कई महत्वपूर्ण नेता भी शामिल थे। दुल्हन का नाम है दायांग्कू राबियातुल अदावियाह पेंगिरान हाजी बोल्कियाह है। शादी के दौरान उन्हें सोने और हीरों से जड़ा ब्राइडल बुके दिया गया। 31 साल के प्रिंस अब्दुल मलिक ने दूल्हे के लिबास थे। वे ब्रुनेई की गद्दी पर बैठने वालों की फेहरिस्त में दूसरे नंबर पर हैं। दुल्हन के परिवार वाले भी राज परिवार से ही है। ब्रुनेई के सुल्तान और दूल्हन के पिता शादी में मौजूद रहे। सुल्तान हसनल बोल्कियाह दुनिया के सबसे अमीर लोगों में से हैं और अपनी छोटी सी तेल के खजाने वाली मुस्लिम सल्तनत के मुखिया हैं। शादी का समारोह इस्ताना नूरल इमान पैलेस में हुआ जो कि ब्रुनेई की राजधानी में है। 1,788 कक्षों, पांच बड़े स्विमिंग पूल, 257 बाथरूम और 110 लक्जरी कारों के गेरेज वाले महल में इतने सारे मेहमानों के बावजूद जगह की कोई कमी नहीं थी। ब्रूनेई की सल्तनत में 16 अप्रैल को हुई भव्य शादी के ठीक दो दिन बाद यानी 18 अप्रैल को कन्यादान समागम के तत्वावधान में 51 कन्याओं के सामूहिक विवाह ने बिहार के सीवान जिला अंतर्गत मैरवा के इतिहास के पन्नों में बेहद चटख रंग से अपना नाम दर्ज कर लिया। मैरवा हरिराम हाईस्कूल के विशाल क्रीड़ांगन में हुए इस सामूहिक विवाह देखने की उत्सुकता में उमड़ी लोगों की भीड़ किसी महाकुंभ से कम नहीं थी। चूंकि इस तरह का आयोजन मैरवा में पहली बार हुआ, इसलिए इसकी जबर्दस्त चर्चा है। समागम के राष्ट्रीय समन्वयक दुर्गा प्रताप सिंह उर्फ पप्पू सिंह तथा प्रमुख समाजसेवी व चिंतक जितेन्द्र सिंह ने बताया कि नौ जोड़ी मुस्लिम वर-वधू व 42 जोड़ी हिंदू वर-वधू ने 18 अप्रैल को एक-साथ जीने की कसमें खाईं। मैरवा धाम स्थित हरिराम कालेज से 51 रथ पर सवार दूल्हों के साथ धूमधाम से बारात निकली। बाबा हरिराम ब्रह्म की पूजा के बाद जगह-जगह बरातियों का स्वागत हुआ। शाम को सर्वधर्म प्रार्थना व दीप प्रज्जवलन के बाद जयमाल हुआ। मुस्लिम समुदाय के जोड़ों का मुस्लिम रीति-रीवाज व हिंदू समुदाय का विवाह वैदिक रीति से विवाह कराया गया। कन्यादान समागम के प्रमुख व आयोजक आयोजक अजीत कन्हैया ओझा की माने तो उनका लक्ष्य एक हजार कन्याओं की शादी कराने का है। संयोजक सुनीता अजीत ओझा ने कहा कि बेटी वृझ बचाओ अभियान को देश के कोने-कोने तक पहुंचाना है। सामूहिक विवाह से जहां समय व धन की बचत होती है वहीं समतामूलक समाज भी स्थापित होता है। मैरवा के इतिहास में यह पहला मौका था, जब एक साथ 51 दूल्हों की बारात निकली। इस बारात में जाति-धर्म की कोई बंदिश नहीं थी। पूरे शहर का भ्रमण करते हुए बारात आयोजन स्थल तक पहुंचा। सुरक्षा के लिहाज से बीडीओ सुधीर कुमार सिंह, थाना प्रभारी अखिलेश कुमार मिश्र, सीओ नंदकिशोर सिंह बारात की गतिविधियों पर अपनी पैनी नजर रखे हुए थे। गुठनी मोड़ पर दुल्हन पक्ष के लोगों ने फूल मालाओं से बारातियों का स्वागत किया। बारात में छोटू सिंह, मुंबई से निलेश सिन्हा, आईएएस हेमचंद सिरोही सहित अनेक संभ्रांत लोगों के साथ आयोजक अजीत कन्हैया ओझा, संयोजक सुनीता ओझा, कन्यादान समागम के राष्ट्रीय समन्वयक दुर्गा प्रताप उर्फ पप्पू सिंह, प्रमुख समाजसेवी व चिंतक जितेन्द्र सिंह (मुड़ा वाले), राष्ट्रीय प्रचारक कृष्णकांत ओझा, मार्ग दर्शक निलेश सिन्हा, जयशंकर झा, पप्पू त्रिपाठी, फिल्म निर्माता उपेन्द्र पाण्डेय, फिल्म डायरेक्टर अरविंद आनंद, पीएन सिंह, भीष्म कुशवाहा, ओमकार प्रसाद, राजेश पाण्डेय, गुरु शरण प्रसाद सिंह आदि भी शामिल थे। कन्यादान समागम के राष्ट्रीय महासचिव कृष्ण कुमार सिंह बाराती टीम का नेतृत्व कर रहे थे। आधुनिकता दिखावेपन व फिजूलखर्ची जैसे कुरीतियों को दूर करने के मकसद से बेटी बृक्ष बचाओ का अभियान के तहत विलासपुर निवासी सुनिता ओझा ने 51 दूल्हे-दुल्हन को पारंपरिक तरीके से धार्मिक स्वतंत्रता के बीच एक सूत्र में बांधकर जो भूमिका निभायी वह मैरवा के लिए अविस्मरीणय हो गया। यह समागम कम से कम 51 असहाय परिवारों के लिए वरदान साबित हुआ। शादी के वक्त एक मां जिस तरह अपनी बेटी की विदाई व बारातियों के स्वागत के लिए एक-एक चीज का ख्याल रखती है वैसे ही समागम के आयोजको ने तैयारिया कर रखी थीं। सभी 51 जोड़े के लिए अलग अलग 5 नग गहना, साड़ी, बरतन, 4 माह का अनाज,बिछावन, फर्निचर व वर वधुओं के माता पिता के लिए कपड़े, यहां तक कि झांपी के सामान तक उपलब्ध थे। कन्यादान समागम के उद्देश्यों के बारे में दुर्गा प्रताप सिह उर्फ पप्पू सिंह तथा जितेन्द्र सिंह ने बताया कि पर्यावरण संरक्षा हेतु बृक्ष व मानव संरक्षा हेतु बेटिया बहुत जरूरी है। इसी को ध्यान में रख कन्यादान समागम कार्यक्रम के द्वारा एक जनजागरण किया जा रहा है। भारतीय इतिहास में एक मान्य सामाजिक संस्था के रुप में विवाह संस्कार का विवरण हमें भारत के ही नहीं, अपितु विश्व के सर्वप्रथम लिखित ग्रंथ ॠग्वेद में मिलने लगता हैं। विवाह संस्कार में प्रयुक्त किये जाने वाले सभी वैदिक मंत्रों का संबंध ॠग्वेद में वर्णित सूर्य एवं सूर्या के विवाह से होना इस तथ्य का निर्विवाद प्रमाण है कि इस युग में आर्यों की वैवाहिक प्रथा अपना आधारभूत स्वरुप धारण कर चुकी थी तथा विवाह संस्कार से सम्बद्ध सभी प्रमुख अनुष्ठान- पाणिग्रहण, हृदयालभन, अश्मारोहण, ध्रुवदर्शन, सप्तसदी आदि अस्तित्व में आ चुके थे। इसके बाद धर्मसूत्रों के समय तक तो इस संस्कार का काफी विस्तार हो चुका था तथा सामाजिक स्तर पर प्रत्येक संस्कारवान् व्यक्ति के लिए इसके विनियोगी का पालन करना एक प्रकार से अनिवार्य हो गया था। महाभारत के आदि पर्व में "आश्रमधर्म' तथा "पतिव्रतधर्म' पर किये गये प्रवचनों से पता चलता है कि उत्तरकुरु को छोड़कर शेष संपूर्ण आर्यावर्त में वैवाहिक संबंधों की पावनता तथा पतिव्रतधर्म के प्रति नारी जाति की प्रतिबद्धता का भाव भली-भांति प्रतिष्ठापित हो चुका था। अब यदि कन्यादान की चर्चा करें तो सबसे पहले उसका अर्थ जानना जरूरी है। कन्यादान का अर्थ कन्या का पिता या अभिभावक उसे वर को देता और वर उसे स्वीकार करता था, तब पिता वर से कहता था कि तुम धर्म, अर्थ और काम तीनों पुरुषार्थों में अपनी पत्नी का सहयोग लेना और वर तीन बार प्रतिज्ञा करता था कि वह ऐसा ही करेगा। इसी के साथ अश्मारोहण की क्रिया होती है, जिसमें वर की सहायता से वधू पाषाण-शिला पर पैर रखती है। उस समय वर कहता है कि तेरा प्रेम मेरे प्रति इतना दृढ़ हो, जितनी कि यह पाषाण शिला है। इस के बाद "सप्त-पदी' होती है, जो विवाह संस्कार का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। इसमें वर-वधू साथ-साथ सात कदम रखते हैं और वर कहता है कि जीवन की स्फूर्ति, शक्ति, धन, संतान और दीर्घ सौभाग्य- पूर्ण जीवन के लिए हम ये सात कदम रख रहे हैं। मैरवा उपनगरी के इतिहास में अजित ओझा और सुनीता ओझा द्वारा कराए गए इस सामूहिक विवाह कार्यक्रम की चहूंओर तारीफ हो रही है।
आलेखः राजीव रंजन तिवारी (फोन- +91 8922002003), फोटोः जगजीत पाण्डेय (फोन- +91 9006363099)
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