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बिहार में सहयोगियों को रास नहीं आया शाह का गणित

नई दिल्ली । बिहार में बीजेपी के सहयोगी दलों ने कहा है कि राज्य में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की पार्टियों के विलय को नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा और बीजेपी अकेले इनका मुकाबला नहीं कर सकती। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा का ये भी मानना है कि राज्य में चुनाव की रणनीति बनाने में बीजेपी अपने सहयोगी दलों की भी राय ले। पिछले दिनों अंबेडकर जयंती पर बिहार में चुनाव अभियान की शुरुआत करते हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने लालू और नीतीश दोनों को शून्य बताया था। शाह ने कहा था कि ये दोनों शून्य हैं और दो शून्य मिल कर शून्य ही बनता है। लेकिन कुशवाहा इस आकलन से सहमत नहीं हैं। उपेंद्र कुशवाहा ने एनडीटीवी से कहा, 'अगर बीजेपी के लोग ऐसा कह रहे हैं तो जमीनी सच्चाई से इनकार कर रहे हैं। ऐसा करना युद्ध के मैदान में उचित नहीं होता है। ये बात सही है कि लालू और नीतीश की ताकत पहले जैसी नहीं रही है। पर साथ आने से मजबूती आ जाएगी। हवा में बात करने से रणनीति नहीं बन पाएगी।' कुशवाहा का आकलन सही भी है। क्योंकि हकीकत ये है कि मोदी लहर के बावजूद लोकसभा चुनाव में इन दोनों ही नेताओं के पैर नहीं उखड़े थे। चाहे दोनों की ही लोकसभा में सीटें न के बराबर आईं मगर वोटों में ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। वो भी तब जबकि दोनों ही अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे। लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद की राष्ट्रीय जनता दल को करीब 20 फीसदी वोट मिले जबकि नीतीश कुमार की जनता दल यूनाइटेड ने 16 फीसदी वोट हासिल किए। इस तरह दोनों के वोट मिला कर 36 फीसदी बनते हैं। अगर कांग्रेस पार्टी को मिले 9 फीसदी वोट मिला दिए जाएं तो बीजेपी विरोधी मोर्चे ने पिछले लोकसभा चुनाव में 45 फीसदी वोट हासिल किए वो भी तब ये सब अलग-अलग चुनाव मैदान में थे। जबकि एनडीए को 39 फीसदी वोट मिले थे। कुछ ही महीने बाद हुए विधानसभा उपचुनावों में इन दलों के साथ आने से तस्वीर पूरी तरह बदल गई। अब हालात बदल गए हैं। लालू और नीतीश औपचारिक रूप से साथ हैं। लालू-नीतीश की नई पार्टी का कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन हो सकता है जो बीजेपी को भारी पड़ जाए। कुशवाहा कहते हैं, 'बीजेपी के लिए बिहार में अकेले अपने बूते पर कभी भी अच्छी स्थिति नहीं थी। एनडीए के लिए भी तब स्थिति ठीक थी जब लालू और नीतीश अलग थे। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। बीजेपी के लिए आसान नहीं है पर एनडीए के लिए मुश्किल नहीं है।' इसीलिए कुशवाहा चाहते हैं कि बीजेपी बिहार के बारे में कोई भी रणनीति बनाते समय अपने सहयोगी दलों को भरोसे में ले। पूछने पर वो ये सीधा जवाब नहीं देते कि क्या एनडीए को नीतीश के मुकाबले मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना चाहिए। उनका कहना है कि इस बारे में जो भी फैसला हो वो सहयोगी दलों के साथ बैठक कर होना चाहिए। शाह ने दो शून्यों के जोड़ की बात चाहे एक जुमले के तौर पर कही हो, मगर ये एक बेहतरीन रणनीतिकार होने की उनकी छवि से मेल नहीं खाती। हो सकता है वो ये कह कर अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल उठाना चाह रहे हों मगर जिस तरह से उनके अपने ही सहयोगी इस बात को खारिज कर रहे हैं, उससे साफ है कि बिहार में बीजेपी को अभी एक लंबी और कठिन लड़ाई के लिए तैयार रहना चाहिए। (साभार)
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