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भक्त की भावना को पूरा करते हैं भगवानः आचार्य मृदुल कृष्ण महाराज

ऋषिकेश। सम्पूर्ण संसार परमात्मा के अधीन है लेकिन परमात्मा ने स्वयं कहा है कि मैं तो अपने भक्त के अधीन हूँ। भक्त जब चाहे और जिस रूप में चाहे, प्रभु उसी रूप में वहाँ प्रगट होते हैं। भक्त की भावना को, उनके हृदय की आस्था को केवल भगवान ही समझ सकते हैं। इसीलिए जीव को अपना दुःख संसार के सामने नहीं, केवल प्रभु के सामने ही प्रगट करना चाहिए। प्रभु पालनहार हैं, वह शरण में आए हुए भक्त की सारी विपदा को हर लेते हैं। यह उद्गार आज परमार्थ गंगातट पर पिछले गुरुवार से चल रही श्रीमद्भागवतकथा के चैथे दिन वृन्दावन से तीर्थनगरी आए आचार्य मृदृल कृष्ण शास्त्री ने व्यक्त किए। देश भर से कथा का अवगाहन करने आए भक्तवृन्द को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भक्तराज प्रहलाद के पिता हिरण्यकशिपु के द्वारा उसे भयंकर से भयंकर यातनाएँ दी गयीं। राक्षसराज ने अपने भक्तराज पुत्र को यह यातनाएँ इसलिए दीं कि वह भगवान का नाम लेना छोड़ दे। परन्तु श्री प्रहलाद जी ने एक क्षण के लिए भी ईश्वर स्मरण को, नाम जप को नहीं छोड़ा। उन्हें विष पिलाया गया, हाथी से कुचलवाया गया, अग्नि में जलाया गया। परन्तु श्री प्रहलाद जी हर घटना में और हर जगह अपने प्रभु का ही दर्शन पाते रहे, इसलिए उन्हें कहीं भी किसी भी तरह की पीड़ा का अहसास नहीं हुआ। पिता के पूछने पर उन्होंने कहा कि हमारे प्रभु तो हर जगह हैं और वह आपके राजमहल के इस खम्भे में भी विराजमान हैं। भक्त की बात को सत्य करने के लिए भगवान नृसिंह पत्थर के खम्भ से प्रगट हो गए। परमात्मा ने दिखा दिया कि भक्त की इच्छा और भावना को पूर्ण करने के लिए वह कभी भी और कहीं भी प्रत्यक्ष दृश्यमान हो सकते हैं। आचार्यश्री ने बताया कि जीव को किसी की निदा या स्तृति करने की बजाए केवल परमात्मा की चर्चा ही करनी चाहिए। प्रभु चरित्रों का श्रवण तथा भगन्नाम जप से प्रभु की कृपा निश्चित रूप से जीव को प्राप्त होती है। आज विशेष महोत्सव के रूप में श्री कृष्ण जन्म नन्दोत्सव धूमधाम से मनाया गया। गोपियों बधाई का सामान लेकर आईं और प्रभु को समर्पित किया। हजारों की संख्या में खचाखच भरे विशाल पण्डाल में यही आवाज गूँज रही थी- ‘‘नन्द के आनन्द भयो जै कन्हैया लाल की’’। व्यासपीठ से आचार्यश्री ने बधाई का सामान जब लुटाया तो श्रोताओं ने बड़े ही उत्साह के साथ बधाइयाँ लूटीं। चार दिनों से गंगातट पर उत्सव सा माहौल है और लोग भक्ति व ज्ञान की गंगा में गोते लगा रहे हैं। श्रद्धालु श्रोताओं का कहना है कि ऋषिकेश में गंगास्नान के साथ-साथ कथा के माध्यम से भाव स्नान को लाभ मिल रहा है।
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