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'आत्मकल्याण के लिए दीक्षा ही सर्वस्व मार्ग'

उदयपुर। तेरापंथ भवन रविवार का दिन एक और इतिहास का साक्षी बन गया। महाश्रमण ने जहां तीन दीक्षार्थियों को दीक्षा दी वहीं आचार्य तुलसी जन्म शताब्दी समारोह में अपने प्रवचन भी दिए। समारोह के द्वितीय चरण के चौथे दिन सुबह 9.30 पर जैन मुनि दीक्षा समारोह प्रारंभ हुआ। मुनि महावीर कुमार ने गीत के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की। आचार्यश्री महाश्रमण ने प्रवचन देते हुए कहा कि हमारी आत्मा अनादिकाल से परिभ्रमण कर रही है। कुछ आत्माओं के भीतर ऐसा भाव उत्पन्न होता है कि परिभ्रमण का अंत करना है। ऐसी आत्मा भव्य होती है। किसी भी आत्मा को भव्य बनाना हमारे हाथ में नहीं होता। वह तो नियति होती है। भगवान महावीर भी किसी आत्मा को भव्य नहीं बना सकते। आत्मा अभव्य है तो है, कैसे भी कर्म उसको भव्य नहीं बना सकते। भव्य आत्मा ही वीतराग के पथ पर चल सकती है। जैन शासन की दीक्षा के बारे उन्होंने कहा कि दीक्षा तो व्रतों का संग्रहण है। दीक्षार्थियों के भाग्य की सराहना करते हुए कहा कि उन्हें संयम के पथ पर अग्रसर होने का तथा एक गुरु के अनुशासन में रहने का अवसर मिला है। तेरापंथ के आचार्यों की आज्ञा को कोई चुनौती नहीं दे सकता। तेरापंथ में दीक्षित होने वालों के मन में यह संकल्प रहे कि गुरु आज्ञा लक्ष्मण रेखा है, स्वप्न में भी इस रेखा को पार नहीं करना है। मृत्यु को कोई भी रोक नहीं सकता। उन्होंने कहा कि दीक्षा लेने वाला ही त्रिलोकीनाथ कहलाता है, क्योंकि इन्होंने त्याग और संयम का रास्ता अपनाया है। दीक्षार्थियों को संबोधित करते हुए आचार्यश्री ने कहा कि ये दीक्षार्थी अपने नाथ बनने जा रहे हैं। माता-पिता के साये को छोड़कर गुरु के पास आए हैं, सब मोह-लोभ त्याग दिया है। आप अकूत धन कमा सकते हैं लेकिन जो साधु प्राप्त करता है वह आपके पास नहीं हो सकता। दीक्षा समारोह में तीन मुमुक्षुओं ने दीक्षा प्राप्त की। साध्वीश्री योगक्षेम प्रभाजी तथा मुनिश्री प्रशांत कुमार ने भी विचार प्रकट किए। जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा का 'संबोधन बोधन व अलंकरण' कार्यक्रम आचार्यश्री महाश्रमण के सान्निध्य में दोपहर दो बजे तेरापंथ भवन में आयोजित होगा। महासभा के सहमंत्री बजरंग सेठिया ने बताया कि आचार्य प्रवर द्वारा अलंकृत महानुभावों को तेरापंथी महासभा प्रतीक चिह्न व स मान पत्र प्रदान करेगी। हजारों लोग बने दीक्षा समारोह के साक्षी रविवार को हुए दीक्षा समारोह के हजारों लोग साक्षी बने। मर्यादा महोत्सव व्यवस्था समिति ने समारोह के लिए व्यवस्था कर आगन्तुकों को अविस्मरणीय समारोह का हिस्सा बनाया। तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल, किशोर मंडल, कन्या मंडल एवं सभी व्यवस्था सदस्यों ने दीक्षा समारोह को सफल बनाने में अहम् भूमिका निभाई। तेरापंथ भवन के मुख्य द्वार पर एवं मुख्य मार्ग पर दो बड़ी टीवी स्क्रीन लगाई गई। स्क्रीन के माध्यम से भवन के अंदर चल रहा दीक्षा समारोह का सीधा प्रसारण भी दिखाया जा रहा था। हंसराज डागा, धर्मेंद्र डाकलिया, जैन लूणकरण छाजेड़ आदि व्यवस्थाओं में जुटे रहे। दीक्षार्थियों का हुआ केशलोचन साधु जीवन ग्रहण करने से पहले दीक्षार्थियों का केशलोचन किया गया। मुमुक्षु प्रिंस का आचार्यप्रवर ने अपनी गोद में सिर रखकर केश लोचन किया। मुमुक्षु प्रसिद्धि तथा मुमुक्षु रजनी का साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा ने केश लुंचन किया। दीक्षार्थी प्रिंस ने दीक्षा समारोह में कहा कि सब पूछते हैं कि तुम इतने छोटे हो, तुमने दीक्षा क्यों ली है। मैं आप सबसे पूछता हूं आप इतने बड़े हैं और अभी तक दीक्षा क्यों नहीं ली। दूसरे बच्चों की तरह मुझे भी गोदी अच्छी लगती है लेकिन मुझे माता-पिता की गोदी नहीं गुरुदेव की गोद चाहिए। ऐसा आशीर्वाद चाहता हूं कि गुरुदेव आपकी सेवा करके फटाफट मोक्ष प्राप्त करुं। मुमुक्षु प्रसिद्धि ने कहा कि जन्म-मरण से मुक्त होने की चाह को आज राह मिल गई। एक खुशी को लेकर जब बार-बार खुश नहीं हो सकते तो एक दुख से बार-बार दुखी नहीं होना चाहिए। आज का दिन मेरे लिए महत्वपूर्ण है जो मुझे मोक्ष का मार्ग दिखलाने वाला गुरु मिल गया है। मुमुक्ष रजनी ने अपने वक्तव्य में कहा कि वह सौभाग्यशाली है कि उसे अपी जन्मभूमि में दूसरी बार जन्म लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। वर्तमान जीवन में सद्गुरु, सद्धर्म मिलना दुर्लभ है लेकिन मैं कहती हूं कि मुझे सद्धर्म और सद्गुरु सहज सुलभ मिले हैं। मिला नया नाम आचार्यश्री महाश्रमण ने दीक्षार्थियों का नामकरण संस्कार भी किया। इसमें मुमुक्षु प्रिंस बाफना को मुनि प्रिंस कुमार, मुमुक्षु रजनी को साध्वी रम्य प्रभा तथा मुमुक्षु प्रसिद्धि को साध्वी प्रफुल्ल प्रभा नया नाम दिया गया। इस मौके पर दीक्षा लेने वाले मुमुक्षु प्रिंस बाफना, मुमुक्षु प्रसिद्धि बैद मूथा तथा रजनी बोथरा के माता-पिता ने दीक्षा प्रदान करने के लिए आचार्यश्री महाश्रमण को अपना आज्ञा पत्र सौंपा। जसकरण बुरड़ ने आज्ञा पत्र का वाचन किया। दीक्षा के बाद आचार्य महाश्रमण की वंदना करते नवदीक्षार्थी। तेरापंथ भवन में आचार्य महाश्रमण का प्रवचन सुनने पहुंचे तेरापंथ धर्मसंघ के लोग। 100 दीक्षा का स्वप्न, अब तक 92 पुष्करवाणी गु्रप ने बताया कि आचार्यश्री महाश्रमण का 100 दीक्षा प्रदान करने का स्वप्न अब पूर्णता की ओर है। केलवा से अब तक 89 और रविवार को तीन और दीक्षा जुडऩे से यह संख्या 92 हो गई है। दो माह पहले ही बीदासर में 43 दीक्षाएं एक साथ हुई थी। मुनिश्री कुमार श्रमण ने बताया कि रविवार को दीक्षा के दौरान महाश्रमण ने सर्वप्रथम दीक्षार्थियों से उनके मन में दीक्षा के प्रति भावना पूछी और उसके बाद आचार्य ने तेरापंथ धर्म के संस्थापक आचार्य भिक्षु तथा पूर्ववर्ती आचार्यों का स्मरण व वंदन किया। उपस्थित साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा को अभिवंदन करके मंत्री मुनि सुमेरमल स्वामी को भी वंदन किया। आचार्यश्री महाश्रमणजी ने तीनों दीक्षार्थियों को नवकार मंत्र एवं आगम सूत्रों का ऊंचे स्वर में उच्चारण कर दीक्षा प्रदान की। महाश्रमणजी ने कहा कि अब ये साधु-साध्वी बन गए हैं। रजोहरण संस्कार प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने दीक्षार्थियों को ज्ञान, दर्शन, चरित्र, शांति और मुक्ति की दिशा में आगे बढऩे का आशीर्वाद दिया। नवदीक्षित साधु-साध्वियों को मंगलमय जीवन संयम से जीने का आशीर्वचन देते हुए कहा कि संयम से ही चलना, पैरों से कोई जीव न मरे इसका विशेष ध्यान रखना। बैठो तो देखकर बैठना, सोओ तो संयम से, भोजन, वाणी में संयम बरतना, अनुशासन का ओज आहार करना, असत्य कभी नहीं बोलना, सहन करना भी सीखना है। महाश्रमणजी ने नवदीक्षित मुनि प्रिंस कुमार को मुनि विश्रुत कुमार के तथा नवदीक्षित साध्वियों को साध्वीप्रमुखा के सान्निध्य में रहकर शिक्षण-प्रशिक्षण प्राप्त करने के निर्देश दिए।
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