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बुलेट राजा: सीधे फ़िल्म को लगी है बुलेट

कोमल नाहटा, मुम्बई। फ़ॉक्स स्टार स्टूडियो, ब्रैंडस्मिथ मोशन पिक्चर्स और मूविंग पिक्चर्स की 'बुलेट राजा' लखनऊ की पृष्ठभूमि वाली कहानी है जो नेताओं और अंडरवर्ल्ड के गठजोड़ पर आधारित है। राजा मिश्रा (सैफ़ अली ख़ान) और रुद्र त्रिपाठी (जिमी शेरगिल) बहुत अच्छे दोस्त हैं जो मिलकर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते हैं। ये दोनों ही मंत्री रामबाबू शुक्ला (राज बब्बर) के लिए काम करते हैं। दोनों एक बिज़नेसमैन बजाज (गुलशन ग्रोवर) को किडनैप करते हैं और फ़िरौती मिलने के बाद उसे छोड़ देते हैं। इसी दौरान राजा की मुलाक़ात मिताली (सोनाक्षी सिन्हा) से होती है और वो उससे प्यार करने लगता है। राजा और रुद्र के कई दुश्मन बन जाते हैं और वो मिलकर रुद्र को मार डालते हैं, साथ ही मंत्री रामबाबू शुक्ला को राजा के ख़िलाफ़ भड़का देते हैं। मंत्री, पुलिस अफ़सर अर्जुन सिंह मुन्ना (विद्युत जामवाल) के ज़रिए राजा को मरवाना चाहता है. आगे क्या होता है. यही फ़िल्म की कहानी है। तिग्मांशु धूलिया और अमरेश मिश्रा की लिखी कहानी में कुछ भी नया नहीं है और हम ऐसी फ़िल्में पहले भी कई बार देख चुके हैं। फ़िल्म में इतने सारे किरदार हैं कि दर्शक उलझन में पड़ जाते हैं। फ़िल्म का स्क्रीन-प्ले भी घिसापिटा है और एक भी दृश्य ऐसा नहीं है जिसे देखकर आपको लगे कि इसे आपने पहले नहीं देखा है। फ़िल्म की तीन बड़ी कमियां हैं। रोमांस दिल को छू नहीं पाता. फ़िल्म में कॉमेडी बहुत कम है और भावनात्मक दृश्य बिलकुल बेजान हैं। सैफ़ और सोनाक्षी का रोमांस फ़िल्म का अहम हिस्सा है लेकिन उसे बिल्कुल ठीक तरीके से नहीं फ़िल्माया गया है। हालांकि फ़िल्म में कुछ एक सीन अच्छे बन पड़े हैं। राजा और बजाज के बीच पीछा करने वाला दृश्य रोमांचक है। राजा और इंस्पेक्टर अर्जुन सिंह के बीच के कुछ दृश्य भी अच्छे हैं। तिग्मांशु धूलिया के लिखे संवादों में उत्तर प्रदेश का स्थानीय असर है। सैफ़ अली ख़ान ने राजा मिश्रा का किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया है। सोनाक्षी सिन्हा ने भी अपना रोल ठीक से निभाया है, लेकिन फ़िल्म में उन्हें बहुत सीमित मौक़े मिले हैं। जिमी शेरगिल भी असरदार लगे हैं. विद्युत जामवाल एक्शऩ दृश्यों में ज़ोरदार लगे हैं। चंकी पांडेय, रवि किशन और राज बब्बर ने भी ठीक-ठाक काम किया है। तिग्मांशु धूलिया का निर्देशन ठीक है। उन्होंने उत्तर प्रदेश के माहौल को बेहतरीन तरीके से दिखाया है और कलाकारों से अच्छा काम निकलवाया है। लेकिन फ़िल्म की कहानी और उसका प्रस्तुतिकरण कुछ हद तक सिर्फ़ हिंदी भाषी क्षेत्र के दर्शकों को ही प्रभावित कर पाएगा। मल्टीप्लेक्स के दर्शकों के लिए इस फ़िल्म में कुछ नहीं है. फ़िल्म का संगीत भी साधारण है। कुल मिलाकर 'बुलेट राजा' एक औसत कहानी वाली फ़िल्म है। ऐसी फ़िल्में हम कई बार देख चुके हैं। सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल में कुछ हद तक इसके चलने की गुंजाइश है लेकिन मल्टीप्लेक्स में शायद उसे प्यार नहीं मिल पाएगा। 'बुलेट राजा' की बंदूक से बुलेट तो निकली लेकिन ये फ़िल्म को ही जा लगी। (साभार--बीबीसी)
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Item Reviewed: बुलेट राजा: सीधे फ़िल्म को लगी है बुलेट Rating: 5 Reviewed By: newsforall.in